Tuesday, August 20, 2019

हाज़मा ठीक नहीं है



हाज़मा ठीक नहीं है 

जब किसी बात की तह में हम जाते हैं 
तब पता चलता है 
और एक कारण से सामना होता है 
अन्तर्मन में ज्वार - भाटा की तेज़ गति, उथल - पुथल,
भयानक हलचल, चुभती तीव्रता का आभास होता है 
जब बचपन में जी रहे थे तो हर समय प्रसन्नचित्त रहते थे 
न किसी का भय, न चिंता, न किसी की पीठ पीछे उसकी बातें 
अब सब उल्टा है, ज्यों-ज्यों उम्र के कदम आगे बढ़ते गये
मस्तिष्क में ईर्ष्या, क्रोध, रिश्तों में दरारें 
साफ़ स्पष्ट दिखने लगीं 
सोच विचारों के उलझते बालों का मटमैला गुच्छा 
ये कह रहा था सब कुछ सामान्य नहीं है     
व्यथा की दर्द भरी कथा, चेहरे का फीकापन,
मंद मुस्कान की गवाही ही काफी थी ये बताने के लिये 
जीवन नैय्या बहुत हिचकोले खा रही है 
बड़ी माथा-पच्ची की, इर्द-गिर्द देखा 
कौवे काँव -काँव  कर रहे थे, शेर यकायक गुर्रा रहे थे 
लोमड़ी हर घर में तांक-झांक कर रही है 
काँव - काँव और झाँकने में सुख को ढूंढती है
क्या किसी की अंदरुनी बातों को ज़हन में 
रखने से ब्याज मिला है ?
आश्चर्य है बुद्धि में अच्छे सोच विचार, नेक नियती की बातें,
और ज्ञान के भंडारों पर पर्दा डाल रखा है
उसके स्थान पर मन को विषैला करनेवाली बातें,
तुच्छ विचार, मीन-मेख निकलने की नयी-नयी तरकीबों के 
कूड़े के ढेर को बहुत ईमानदारी से सजा रखा है 
और ये कूड़े के अम्बार उल्टी के रूप में बहार निकलते हैं 
और अड़ोस-पड़ोस के वातावरण को ख़राब करते हैं 
एक चिंगारी के फैलते ही गाली-गलौज, घूंसे थप्पड़ों की बौछार
गालों पर और पीठ पर, कभी-कभी गरम हवाओं में डंडे लहराने लगते हैं 
"रत्ती" भर भी कभी हमने सोचा है इसका कारण, 
क्योंकि लोगों का "हाज़मा ठीक नहीं है"......
यही सबसे बड़ा दोष है मनुष्यों में 
विश्व में दुखों की भरमार और सुख की कमी है...... 


Tuesday, February 5, 2019

लौ जगा



लौ जगा 


इक लौ जगा अपने दिल में 
जगमग जगमग बनी रहे
ख़ुशहाली से नहीं राबता  
उदासी मन में जमी रहे 


बहकी अलसाई आंखें 
हर बात पे मुझको टोकें 
अम्बर तल्खियों का फैला 
प्यार की हरपल कमी रहे 


काँटों की खेती न करो 
ज़ख्मों को न दो दावत 
रिश्ते रहें सदा सलामत
प्रीत की बरखा घनी रहे 


काले साये क्यों लहराये
हसीं के बदल उड़ गये 
नूर आँखों का धुँधला है 
"रत्ती" भौहें सदा तानी रहे 


इक लौ जगा अपने दिल में 
जगमग जगमग बनी रहे 


Thursday, January 3, 2019

"स्वाद"


मेरे प्यारे दोस्तों, नव वर्ष  २०१९ की हार्दिक शुभकामनाये।  एक रचना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। 


"स्वाद" 


कुछ वक़्त काटकर तेरे लिये छोड़ रक्खा है।  
तेरा इरादा न सही, मेरा मिलने का पक्का है।। 


रूह ठंडी-ठंडी सांसों में निढ़ाल सी पड़ी
आ धमकी न जाने कहाँ से मुश्किल घड़ी
कोई आहट कानों में गूंजे वार्ना धक्का है।  


इस छोर से उस छोर तक मसले ही मसले हैं 
दिल में जली-कटी कुछ हरी-भरी फसलें हैं
उम्मीदों के भले-बुरे स्वादों में "रत्ती" कड़वा ही चक्खा है