Monday, September 28, 2009

रावण

रावण


आज अख़बार में एक ख़बर पढ़ी
रावण का कद छोटा हो गया है ।
मैं पढ़ कर थोड़ा हैरान हुआ
महंगाई ने भले ही रावण का कद
छोटा कर दिया हो
लेकिन रावणों के ग़लत मंसूबों पर
पानी फेरना अत्यंत कठिन काम है ।
रावण आज भी हमारे हृदय में बसता है ।
राम को दिल में रखने की जगह नहीं है ।
रावण के दस सिर हैं
और दस सिरों में से अनेक प्रकार के
विषय-विकार जन्म लेते हैं ।
आज के आधुनिक युग में,
विभीषण भी बहुत हैं
और रावण भी बहुत हैं
देश और धर्म की सेवा करनेवाले
विरले ही नज़र आते हैं ।
रावण वो विशाल वृक्ष है,
जिसकी जड़ों पर हर इंसान
अपने स्वार्थ का पानी डाल कर,
उसको पुष्टि देता है, ताक़त देता है ।
आज हम सब लोग रावण के हाथ
मज़बूत कर रहे हैं ।
कौन कहता है के रावण मर गया है,
उसका कद छोटा हो गया है ।
आप अपने इर्द-गिर्द देखेंगे तो
राम के भेस में रावण नज़र आयेंगे,
हम सभी रावण की ही भक्ति
रोज़ करते हैं ।
उसकी हर बुराई की नकल करते हैं,
उस पर अमल करते हैं ।
हमारे देश भारत में
प्रतिदिन सीता की इज्ज़त नीलाम होती है
और लोग सिर्फ़ तमाशा देखते हैं ।
आप कह सकते हैं, युग बदला है
लेकिन हमारा स्वभाव, हमारी बुरी आदतें
नहीं बदली ।
हमारे विषय-विकारों का दायरा,
रावण के कद से कई लाख गुणा बड़ा है ।
रावण हमारी प्रेरणा का साधन बन गया है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वचन
किताबों तक ही सीमित रह गये हैं
और हम सिर्फ़ रामराज की कल्पना ही
कर सकते हैं ।
आप ही बताईये रावण के भक्त
राम की भक्ति कैसे कर सकते हैं?
मन में राम को बसा लो या रावण को,
क्योंकि मन तो हमारे पास एक ही है ।
गुरूग्रंथ साहिब की गुरूबाणी में लिखा है
"एक लख पूत सवा लख नाती
तिस रावण के घर दीया न बाती"
तो साथीयो कहने का अर्थ यह है
बुराई पर अच्छाई कि विजय अवश्य होगी ।
ये बात आप स्वर्ण अक्षरों में लिख लो ।

Sunday, September 6, 2009

हयात

हयात
थोड़ा-थोड़ा जीता हूँ ज़रा-ज़रा मरता हूँ,
ग़मों की आग में सुलगता हूँ जलता हूँ

ख़ुश्क अरमां हैं दम-खम भी नहीं बचा,
बेसाख्ता मिज़ाज न बिगड़े संभलता हूँ

हयात में तंदखू-ओ-बरहम भी मिले,
उलझ न जाऊँ किसी से मैं डरता हूँ

ख़ुद-परस्ती का शोर-गुल कानों में पड़ा,
कशमकश में बिना वजह उलझता हूँ

कहाँ तलक परेशानियां कोई सहन करे,
इसीलिये हर क़दम फूँक के धरता हूँ

तमाम शब एक तदबीर की तलाश रही,
बस जाहिलों के मानिन्द हाथ मलता हूँ

कुछ पल उपरवाले को याद करूँ लेकिन,
एक लम्हा भी ख़ुदा की इबादत न करता हूँ

मैं वफ़ा के कसीदे किसको सुनाऊँ "रत्ती"
दुनियाँ अपनी राह मैं अपनी राह चलता हूँ

शब्दार्थ

हयात - जीवन, बेसाख्ता - अचानक,
तंदखू - तेज़, बरहम - अप्रसन्न



Friday, September 4, 2009

अच्छा नहीं


अच्छा नहीं

मुझे बेवफा न समझो, ये अच्छा नहीं

सच तो आयेगा सामने, छुप सकता नहीं

मुझे बेवफा न समझो .....


माना के हमसे कोई, ख़ता हुई होगी,

ज़रा सी चोट से कोई, मर सकता नहीं

मुझे बेवफा न समझो .....


तुम मेरे हमसफर हो, मेरा भी तो हक़ है,

तुमको मैं छेड़ दूँ, तो कुछ घटता नहीं

मुझे बेवफा न समझो .....


अगर ऐसी बात है तो, हम चुप ही बेहतर,

ये नोक-झोंक, गिला-शिकवा, अच्छा नहीं

मुझे बेवफा न समझो .....


छोटी सी बात की, इतनी बड़ी सज़ा,

संगदिल भी रोता एक दिन, बचता नहीं

मुझे बेवफा न समझो .....


यक़ीं कर लो हमारा, मुहब्बत है तुमसे,

क्या करे "रत्ती", बिना बोले रह सकता नहीं

मुझे बेवफा न समझो .....