दोस्तों,
इधर कुछ दिनों
से मसरूफियत के
चलते, मैं कुछ
लिख नहीं पाया
... आज एक छोटा
सा गीत लेकर
हाज़िर हूँ कुबूल
फरमाएं - सुरिन्दर रत्ती - मुंबई
"दरार"
- गीत
प्यार में दरार
क्यूँ, बिखरे हैं सारे
रास्ते
तू ही बता
जाने जिगर, क्या
करूँ तेरे वास्ते
प्यार में दरार
क्यूँ .....
रूठ के हमदम
क्या, होगा अब
हासिल तुझे
दर्द के क्या
मायने, असर नहीं
किसी बात से
प्यार में दरार
क्यूँ .....
मचलती लहरों को देखो,
जलते बुझते दीये
वह शम्मां क्या जियेगी,
जो डरती है
आग से
प्यार में दरार
क्यूँ .....
तिश्नगी बढती रही,
किसने पुकारा है
उसे
सांसों की डोर
बोली, टूटने का
डर रात से
प्यार में दरार
क्यूँ .....