बेरंग
इस रंगीन दुनियाँ में,ज़िन्दगी बेरंग है,
ये कैसा अजूबा है मौला,हर शख्स तंग है
मायुसी है के बस,सर उठाने नहीं देती,
क़दम-क़दम पे लड़ाई,हर काम में जंग है
हुस्न और दौलतवालों को,दावत के पैग़ाम मिले,
सिमटा दायरा प्यार का,अपनी-अपनी पसंद है
फौलाद की बेड़ियाँ टूट जायेंगी,फ़रेब की नहीं,
अपनें ही जाल में आदमी,हो रहा नज़रबंद है
जद्दोजहद में इंसानियत,खो गयी है कहीं,
हड्डियों के ढांचे की, आवाज़ बुलन्द है
ना सुननें की आदत नहीं,हुक्म की तामील हो,
जी हज़ूरी करनेवाला,खिलौना ही पसंद है
मदरसे में पढे सबक,कुछ याद हैं कुछ भूल गये,
दो और दो पाँच करके,बनें दौलतमन्द है
सियासतदाँ ने कहा,पाँच साल बाद मिलेंगे "रत्ती"
तुम जियो या मरो,अपन तो अमन पसंद है
bahut sundar najm hai.badhai.
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