सियासत
आज़ादी बनी "रत्ती" का सपना
खामोश रहने की हिदायत
देते सब हालात
कहा गिरवी रख छोड़े हमने
अच्छे वो ख्यालात
मन मुआफ़िक़ हर काम करें
मतलब से करे वो बात
हर बात धुएं में उड़ाते
कब मिलेगी निजात
आज़ादी की परवाज़ काश
पहले सी फिर होती
तार दिलों के जुड़े रहते
प्यार से करते बात
दिल के सफ़ेद पन्नो पर
बिखरी काली सियाही
दिखते नहीं दर्द किसी के
ज़ख्मों पे करे आघात
हम आज़ाद परिंदों के
पर कुतर डाले
सियासत खा गयी सबको
बाद से बदतर हालात
महंगाई के ये जलज़ले
रोज़ तोहफे में आते
टुकड़े टुकड़े अवाम के
बची न कोई जमात
शिद्दत से उछले थे मुद्दे
उम्मीद लिए अरमान से
रहनुमाई करनेवाला पूछे
सवालात पे सवालात
अच्छी लगती नहीं ज़ंजीरें
न पिंजरे के तोते हम
ज़ुल्म न करो हम पे
न मारो घुसे लात
एक एक दर्द उसे बताया
सुनी-अनसुनी हो गयी
क़ुरबानी के बकरे की
हयात काली रात
आज़ादी बनी "रत्ती" का सपना
शायद कोई मिले अपना
आस की प्यास रहेगी मन में
जाने कब होगी मुलाक़ात
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