सियासी लीडर
क्या लीडर सच्चा होता है, अपनी अवाम का ।
या फिर भूखा दौलत का, नहीं किसी काम का ।।
नक़ाब-पे-नक़ाब ओढ़ के, निकले अपने घर से,
बखूबी रोल अदा करे वो, शातिर बेईमान का ।
उनकी सियासी चालों से, हम तो नहीं वाक़िफ़,
खामोशियों में था इशारा, लोगों के क़त्लेआम का ।
मेरे ज़हन में बसी हैं, कई उलझनें उलझी,
मुझे भरोसा अपने खुदा, वाहेगुरु, प्यारे राम का ।
माना के सियासत में तो, सब होता है जायज़,
हर तबके की हिफाज़त, भरोसा दो जान का ।
ज़िन्दगी मुड़-मुड़ के "रत्ती", ले इम्तिहां हमारा,
क्या कोई दर बचा है, मोहब्बत का, ईमान का ।
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