बात न करो
लामज़हबों की दुनिया में मज़हब की बात न करो,
वो तो ख़ुदा को नहीं बख्शते इंसां की बात न करो
कौन सुनेगा फरियाद किसी की मसरुफ जो ठहरे,
जब दौर-ए-गर्दिश हो इंसाफ की बात न करो
मेरी दहलीज़ पर हंगामें डेरा डाले बैठे रहे,
दौर-ए-नाशाद में शाद की बात न करो
जिस्म का मर्ज़ और दिल का दर्द बताऊँ किसे,
उसने कहा मेरी सुनो अपनी बात न करो
दुनिया बेरहम-ओ-बेरुखी के क़ायदे पढ़ती है,
ऐसे में तहय्युर-ओ-तज़वीज़ की बात न करो
कल नज़र उठा के देखा तदबीर तो मौजूद थी,
मनसब ठीक न हो उम्मीद की बात न करो
"रत्ती" घिर गये हो तुम सेहरा के जंगलों में,
रेत ही मयस्सर होगी पानी की बात न करो
शब्दार्थ-
लामज़हब = नस्तिक, नाशाद = दुख,
मनसब = लक्ष्य, मसरूफ = व्यस्त शाद = सुख,
तहय्युर = बदलाव, सेहरा = मरुस्थल तज़वीज़ = राय।
मयस्सर = उपलब्ध
bhut khub. likhate rhe.
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