Sunday, August 31, 2008

मुझे जीने दो

मुझे जीने दो

मेरा जीवन, जीवन नहीं,

मेरी अपनी इच्छा का होना, न होना एक बराबर है,

और मेरी पीड़ा की चिंता कोई क्यों करे,

ये सुंदरता, ये सुगंध ही मेरे हथियार हैं,

जिनके बलबुते पर, मैं मानव को ही नहीं,

भंवरे, तितलियाँ और अन्य कीट-पतंगों को भी,

अपनी ओर आकर्षित करता हूँ,

सबके मन को मोह लेता हूँ ,

मानव मुझे चाहता है लेकिन,

उसका आचरण किसी कसाई से कम नहीं,

मेरी साँसे सुई की नोक से रोक कर,

अधमरा जीने को मजबूर करते हैं,

कितने स्वार्थी हैं सब,

दूसरों को प्रसन्न करने के लिये,

मेरे जीवन की बली देते हैं,

कभी किसी के गले का हार बना,

कभी पत्थर की मूरत के चरणों की शोभा,

किसी शवेत टोपीधरी मंत्री को भेंट,

स्वागत का पुष्प गुच्छ

और किसी मृत शरीर को ढकनेवाली,

फूलों की चादर,

और फिर काम पूरा होते ही,

कूडे़ के ढेर में .....,

हर फूल का भाग्य भी,

मनुष्य जैसा ही है,

ईश्वर ने हर किसी को,

उसके कर्मों के अनुसार फल दिया है,

मैं एक कोमल फूल हूँ,

जब तक कुम्हला न जाऊं,

तब तक मुझे डाल से न तोड़ें,

ये मेरी आप सब मनुष्यों से बिनती है,

फूल तोड़ने पर ऐसा प्रतीत होता है,

जैसे किसी बच्चे को माँ से छीन लिया हो,

मैं नन्हा सा फूल ही सही,

मुझे भी जीने का अधिकार है,

मेरा ये अधिकार न छीनो मुझसे,

मैं भी स्वतंत्र रहना चाहता हूँ ,

मुझे जीने दो ..... मुझे जीने दो .....,


Thursday, August 7, 2008

गुज़ारिश


गुज़ारिश

शब-ए-फिराक़ में दीप जला दो,

एक भटके हुए को राह दिखा दो


तारीक-ए-ग़म का असर रहेगा,

ज़रा सोये उजालों को जगा दो


अहल-ए-वफ़ा से पूछो धड़कनो का,

टूटे न सांसें मेरी न और सज़ा दो


वक़्त-ए-इम्तिहान में नतीजा बुरा है,

वक़्त रहते हमें निजात दिला दो


मेरे ग़म में अब्र भी बरसते रहे मगर,

उस संगदिल को कोई मोम बना दो


तुम्हारा प्यार ही फक़त मेरा जुनू है,

अपनी बांहें फैला दो कुछ मज़ा दो


वो हमपियाला, हमनिवाला, हमराह भी,

"रत्ती" गुज़ारिश करे न और अब दगा दो

शब्दार्थ

शब-ए-फिराक़ = विरह की रात, तारीक-ए-ग़म = शोक का अंधकार

अहल-ए-वफ़ा = प्रेमी लोग, वक़्त-ए-इम्तिहान = परीक्षा का समय

अब्र = बादल, संगदिल = पत्थर, हमपियाला, हमनिवाला = मित्र

Monday, August 4, 2008

नन्ही कली


नन्ही कली

यौवन की दहलीज़ पर अक़्सर क़दम बहक जाते हैं

और जवानी सर चढ़ कर बोलती है

मनमानी करती है

कुछ क्षणिक सुख की अनुभूति होती है

पश्चात मुसीबतों को आमंत्रण

जवानी की एक भूल, वो लहरों का संगम

जिसमें युगल अंधे होकर सीमाओं को लांघ जाते हैं

नतीजा नवजात की उत्पति

फिर समाज का भय, इज्ज़त नीलाम होने का डर

ये ड्रामा नहीं, फिल्मी कहानी नहीं, सच्चाई है

एक माँ घुप अंधेरे में, आधी रात को निकलती है

एक बदबूदार कूडे के डब्बे में

अपने कलेजे के टुकडे को फ़ेंक कर

छूटकारा पा लेती है

क्या होगा उस नन्हीं सी कली का ?

देखिये, माँ के मुंह फेरते ही

भिनभिनाती मक्खियों ने स्वागत किया

और मूषक महाराज क्यों पीछे रहते

उन्होंने अपनी जिव्हा को पवित्र किया

चोंच से लहू-लूहान किया नवजात को

आज महभोज मिला कूडे़ के ढेर में

भला हो उस राहगीर का

कानों में दर्द भरी आवाज़ सुनकर

वो कूडे़ के ढेर में बच्चे को देखकर

आश्चार्य चकित हो गया

वो फरिश्ता बन कर आया था

उसे अस्पताल ले गया

हम कितने कठोर दिलवाले हैं

माँ का ये रुप इज्ज़त के क़ाबिल नहीं

वो पिता भी कम दोषी नहीं

पाप का भागीदार है

आज ममता से भरा हुआ दिल

चट्टान में परिवर्तित हो गया है

माँ तुम्हें सौगन्ध है,

तुम जहाँ कहीं भी हो, वापिस आ जाओ,

मुझे बचाओ, तुम्हारे बिना मैं जीवित नहीं रह सकता

तुम्हारे जीवित रहते लोग मुझे यतीम कहते हैं

ग़ल्ती माँ -बाप की है

सज़ा नन्हीं कली को क्यों ?

बच्चे को क्यों ?

महंगाई



महंगाई


बडे सयाने कह गये, इसे मीठा ज़हर बताये हैं,

महंगाई ने हम सबके, चेहरे खुश्क बनाये हैं


तवंगर अपना रोवे, मुफलिस भूखा सोवे,

आज दुनियावालो ने, ग़म के गीत गाये हैं


जीना हुआ दुश्वार सभी का, सबकी एक कहानी है,

महंगाई के भूत ने देखो, हर शै पे पेहरे लगाये हैं



जमाखोरी, घूसखोर का, हुआ था पहले संगम,

उनके नालायक बेटे ने, चूल्हे सबके बुझाये हैं



उम्र तो अपनी रफ़्तार से, बढती ही चली जाये,

महंगाई जो बढ गयी तो, कम न होने पाये है



महंगाई तो दुश्मन का, बडा ज़ालिम बेटा है,

हर शख्स के सर पे उसनें, डन्डे बहोत बरसाये हैं



बेबस ज़िन्दगी कोस रही, उस उपरवाले को,

दो निवाले सुख के नहीं, आज तलक खाये हैं



ख़ुदा कहे कोई मुझको, न देना इल्ज़ाम,

गुनाह तुम्हारे सवाब तुम्हारे, वही सामने आये हैं



यारब करिश्मा कर, "रत्ती" पत्थर हज़म करे,

रोटी से निजात मिले, मैंने हाथ बहोत फैलाये हैं

शब्दार्थ
तवंगर= अमीर, मुफलिस= गरीब, दुश्वार = कठीन,

सवाब =पुण्य, निजात =छुटकारा