गुज़ारिश
शब-ए-फिराक़ में दीप जला दो,
एक भटके हुए को राह दिखा दो
तारीक-ए-ग़म का असर रहेगा,
ज़रा सोये उजालों को जगा दो
अहल-ए-वफ़ा से पूछो धड़कनो का,
टूटे न सांसें मेरी न और सज़ा दो
वक़्त-ए-इम्तिहान में नतीजा बुरा है,
वक़्त रहते हमें निजात दिला दो
मेरे ग़म में अब्र भी बरसते रहे मगर,
उस संगदिल को कोई मोम बना दो
तुम्हारा प्यार ही फक़त मेरा जुनू है,
अपनी बांहें फैला दो कुछ मज़ा दो
वो हमपियाला, हमनिवाला, हमराह भी,
"रत्ती" गुज़ारिश करे न और अब दगा दो
शब्दार्थ
शब्दार्थ
शब-ए-फिराक़ = विरह की रात, तारीक-ए-ग़म = शोक का अंधकार
अहल-ए-वफ़ा = प्रेमी लोग, वक़्त-ए-इम्तिहान = परीक्षा का समय
अब्र = बादल, संगदिल = पत्थर, हमपियाला, हमनिवाला = मित्र
क्या कमाल की ग़ज़ल लिखी है, बधाइयाँ!
ReplyDeletelazwaab.. yaar..
ReplyDeleteoye kammal kar ditta.. ratti..
congrats for such a nice gazal
वक़्त-ए-इम्तिहान में नतीजा बुरा है,
ReplyDeleteवक़्त रहते हमें निजात दिला दो
मेरे ग़म में अब्र भी बरसते रहे मगर
उस संगदिल को कोई मोम बना दो
" hmm to ye raaj tha itne dino ke khamoshee ka, wah shandaar gazal bhut sunder"
Regards