महंगाई
बडे सयाने कह गये, इसे मीठा ज़हर बताये हैं,
महंगाई ने हम सबके, चेहरे खुश्क बनाये हैं
तवंगर अपना रोवे, मुफलिस भूखा सोवे,
आज दुनियावालो ने, ग़म के गीत गाये हैं
जीना हुआ दुश्वार सभी का, सबकी एक कहानी है,
महंगाई के भूत ने देखो, हर शै पे पेहरे लगाये हैं
जमाखोरी, घूसखोर का, हुआ था पहले संगम,
उनके नालायक बेटे ने, चूल्हे सबके बुझाये हैं
उम्र तो अपनी रफ़्तार से, बढती ही चली जाये,
महंगाई जो बढ गयी तो, कम न होने पाये है
महंगाई तो दुश्मन का, बडा ज़ालिम बेटा है,
हर शख्स के सर पे उसनें, डन्डे बहोत बरसाये हैं
बेबस ज़िन्दगी कोस रही, उस उपरवाले को,
दो निवाले सुख के नहीं, आज तलक खाये हैं
ख़ुदा कहे कोई मुझको, न देना इल्ज़ाम,
गुनाह तुम्हारे सवाब तुम्हारे, वही सामने आये हैं
यारब करिश्मा कर, "रत्ती" पत्थर हज़म करे,
रोटी से निजात मिले, मैंने हाथ बहोत फैलाये हैं
शब्दार्थ
तवंगर= अमीर, मुफलिस= गरीब, दुश्वार = कठीन,
सवाब =पुण्य, निजात =छुटकारा
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