होली
अब तो मोहन तुम बिन, कुछ नहीं सुहाता,
होली ही नहीं कोई, उत्सव नहीं भाता,
आतंकी ख़ून की होली, रोज़ ही खेलें,
बेगुनाह लोगों की, जां ही ले लें,
सरकार मूक होकर, तमाशा देखती है,
हत्याओं पर लगाम लगे, ये न सोचती है,
बिगड़ा रईस अबला के साथ, होली मनाता है,
गंगा मैली होती रोज़, कोई न बचता है,
अब जीवन के सारे रंग, फिके लगते हैं,
नंगा बचपन, अंधी जवानी, लाचार बुढापा सिसकते हैं,
होली तो एक बहाना है, बस गुण्डा-गर्दी फैलाना है,
वासना है दिलों में, मक़सद भूख मिटाना है,
प्यार के लाल रंग, लुप्त होते जा रहे हैं,
शत्रुता के काले रंग ही, नज़र आ रहे हैं,
मोहन तुम्हारे संग, होली खेलना चाहता हूँ,
भक्ती और श्रद्धा के रंग में, डूबना चाहता हूँ,
पिचकारी में कृपा द्दृष्टी के , रंग भर के डारो,
"रत्ती" भक्ती का पक्का रंग, मुझ पे डारो
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