अधमरा
मैं वो गुल हूँ
जो खिला भी और नहीं भी
ज़िन्दा भी और नहीं भी
जो भी आया
नोचनेंवाला, मरोड़नेवाला,
दिन-रात ज़हर घोलनेवाला,
दरियादिल, नेकदिल
इंसान मिला भी और नहीं भी
उसनें क़सम खायी
सितम ढाने की, मुझे डुबाने की
बहुत कोशिशें की, जिंदा लाश बनाने की
ख़ुदा का शुक्र है, कुछ हद तक
मैं मरा भी और नहीं भी
वादे ढेरों वादे
देखते-देखते, सुनते-सुनते
सपनो के जाल, बुनते-बुनते
वादा फक़त वादा ही रहा,
सपना पूरा हुआ भी और नहीं भी
तन्हा दिल बोल उठा
तन्हाई में मजबूरियों से
किया सलाह-मशविरा, बढ़ती दूरियों से
रातभर करवटें, मैं बदलता रहा
रतजगा सोया भी और नहीं भी
सब दिन ख़ौफ भरे
निवाला छिनने का डर
सहमा ही रहा ज़िन्दगी भर
गुमशुदा हिम्म्त की तलाश में,
बेदम "रत्ती" ज़मीं पे गिरा भी और नहीं भी
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