कुम्भकरण की भांति मनुष्य है आज भी सो रहा बहुमूल्य सभ्यता प्रथा संस्कृति भी खो रहा ....सुरिंदर जी ....बहुत ही भावपूर्ण , संदेशात्मक , और सटीक बात कही है आपने ....ये सिर्फ एक अच्छी रचना न हो कर एक आहवान है हम सब के लिए ....बधाई स्वीकारें ---मुफलिस---
सच को बेहतरीन शब्दों से सजा कर जन मानस को उद्वेलित करने का आपका प्रयास सराहनीय है.बधाई.
मनुष्य इस नियति का जिम्मेदार खुद है.....बहुत बढिया लिखा है
कुम्भकरण की भांति मनुष्य
ReplyDeleteहै आज भी सो रहा
बहुमूल्य सभ्यता प्रथा
संस्कृति भी खो रहा ....
सुरिंदर जी ....
बहुत ही भावपूर्ण , संदेशात्मक , और
सटीक बात कही है आपने ....
ये सिर्फ एक अच्छी रचना न हो कर
एक आहवान है हम सब के लिए ....
बधाई स्वीकारें
---मुफलिस---
सच को बेहतरीन शब्दों से सजा कर जन मानस को उद्वेलित करने का आपका प्रयास सराहनीय है.
ReplyDeleteबधाई.
मनुष्य इस नियति का जिम्मेदार खुद है.....बहुत बढिया लिखा है
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