हक़
कुदरत तूने जो किया, तेरा पूरा हक़ है
मगर बन्दे सबको तेरी, सोच पे शक है
तू जाग के भी सोता रहा रात-दिन
अब वक़्त है सड़ती लाशों को गिन
राहत की बातें खालिस बक-बक है
शिवाले की मूर्ति ने जो नज़ारा देखा
क्या सही होगी इससे हाथों की रेखा
जिनको दौलत मिली उनका लक है
खुदा के वास्ते कुदरत से न खेलो
वो जो भी देता है प्रेम से ले लो
"रत्ती" जो तेरी जेब में उतना तेरा हक़ है
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