राम ही सर्वत्र है
राम इत राम उत
राम ही सर्वत्र है
ये बात जान ले
पल्ले बांध ले
मान ले
राम ही हर साँस में
रोम-रोम में
ध्यान कर ले
ठान ले
जग बिच घोर अँधेरा
मन को टटोल
अंतर पट खोल
मान ले
संत की संगत में
बहती प्रेम धरा
धोवे पाप सारा
ज्ञान ले
निज मन पे काबू
"रत्ती" कर सीख
न मांग भीख
जान ले
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