आरज़ू कहाँ जाये
ठंडी हवाओं के लम्स ने
मदहोश किया
कारवां रुकवा दिया
रात रंगीनियों में जवां
बिखरी हुई
सुब्ह को मिलेंगे गर्म
उबलते ताने-बने
दिल झकझोरते अफ़साने
उस चौराहे पे अंजान
कड़कड़ाती धूप तले
तलवे जलते रहे
तपिश जिस्म में फैल गयी
निढाल ज़िन्दगी तकती रह गयी
जहाँ दिलासा भी गुमशुदा हो
तो "रत्ती" आरज़ू कहाँ जाये .......
No comments:
Post a Comment