जलते नारे
अपना ही घर उजाड़ दिया, सरफिरे आवारों ने,
आग लगा दी चार-सू, गलियों में चौबारों में ।
किसी के घर का चराग़ बुझा, किसी के सर ज़ख्म लगा,
अब के बहुत आग देखी, आरक्षण के जलते नारों में ।
आतंकी सारे घर में थे, लूटपाट के सफर में थे,
आगजनी-राख पसरी थी, तड़पती लाशें अंगारों में ।
दुकानें, स्कूल बने शमशान, स्वाह हुआ सारा सामान,
हैवानों की अकल जानवरों सी, नाम गुनहगारों में ।
तुमने ग़रीबी के बीज बोये, आनेवाली नस्लें पाप ढोयें,
भीख मंगाते एकदिन "रत्ती", नज़र आओगे कतारों में ।
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