नारी
औरत तो अपना फर्ज़ खूब निभाती रही,
और ये दुनियाँ मासूम पर ज़ुल्म ढाती रही
न मालूम कितनी कुर्बानियां दी हैं अब तलक,
वो बेक़सूर होकर भी ताउम्र सज़ा पाती रही
बेटी, माँ, सास का किरदार सलीके से निभाया,
इनाम तो न हुआ हासिल ज़िल्लत ही पाती रही
उसे इल्म ही न था कुछ सीखने समझने का,
यही एक कमी थी दुनियाँ बेवक़ूफ बनाती रही
कौन कहता है औरत कमज़ोर है, लाचार है,
मिसाल है झांसी की रानी दुश्मनों को डराती रही
चान्द को छूनें वाली सुनीता भी मिसाल बनी,
ऐसी साइंसदाँ को दुनियाँ सर पे उठाती रही
जो गुज़री वो तवारीख़ है आज समां तेरे हाथों में,
नसीब भी बदल दूँगी नये पलान बनाती रही
नारी ममता, लाड, प्यार की सच्ची देवी है
"रत्ती" इमानदारी से अपना काम निभाती रही
सुरिन्दर जी
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है-
कौन कहता है औरत कमज़ोर है, लाचार है,
मिसाल है झांसी की रानी दुश्मनों को डराती रही
स्वागत है।
अब मैं क्या कहूं
ReplyDeleteजब सारीफिज़ा ही
वाही-वाही कर रही है...
---
उम्दा. लिखते रहिये. रूबरू भी कराते रहिये.
सादर;
http://ultateer.blogspot.com