Monday, November 23, 2009

परायाधन

परायाधन - यह एक शब्द अपना अर्थ खुद बता रहा है,
लड़कियाँ परायाधन हैं, तो हम शुरू से ही मान कर चलते है,
जो चीज़ हमारी है ही नहीं, उस पर समय क्यों बर्बाद करें,
आदमी की ये हिंसक प्रवृति, बाहर नहीं मन के भीतर रहती है,
और समय-समय पर वह कटोतियाँ करता है,
चंद काग़ज़ के टुकडे़ बचा लेता है,
मन में हिंसक वारदातों का क्रम जारी रहता है,
भेद-भाव के कीडे़,
लड़की के जन्म से ही खोपड़ी में मंडराने लगते हैं,
योग्य होनहार अयोग्य बनी,
सारे मोहल्ले में गंवार ही रही,
अशिक्षित अंगूठा छाप रही,
दो आँखों में से एक आँख में किरकिरि जैसी,
किसी को अपने अधिकार से वंचित रखना
ऐसे ही है जैसे किसी स्वतंत्र पंछी के पंख काटना,
उसकी नीले गगन की उड़ान अधूरा स्वप्न बन कर रह जायेगी
आखिर बर्तन ही तो मांजने हैं लड़कियों को,
उनके लिए जो भी किया आधेमन से,
उत्थान की बातें करेनवाला समाज
आँखवाला अंधा होकर, टुकूर-टुकूर
उस बेला की बाट जोहता है,
कब इसके हाथ पीले होंगे, मन का बोझ कम होगा,
इतना ही नहीं, क्रुर मानव तो जन्म से पहले ही लड़कियों को
गोलोक में पहुंचाने की योजनाओं को
क्रियान्वित करने के लिये तत्पर दिखा,
कमअक्ल से बनी पतवार, भेद-भाव से भरी नाव को
कैसे पार लगायेगी?
माना के परायेधन पर हमारा अधिकार नहीं है,
लेकिन उसकी सुरक्षा के लिये हम कटीबद्ध जीव,
माँ-बाप विमुखता, संकीर्णता और सब लोग
नरक के द्वार खटखटाने में लगे हुए हैं
तो यमराज ने देखा और कहा ..... तथास्तु .....

Thursday, November 12, 2009

मेहरबां

मेहरबां
अगर मुट्ठी में  है वो   आसमां,
कोई न   कहेगा  तुमको  नातवाँ



शहंशाह  के  जैसी  होगी  जिंदगी,
हर   लम्हा  मस्ती  से  भरा  जवां



हर शख्स की जुबां पे रहेगा  नाम,
तेरा चर्चा होगा रोज़ हर सू बयां



चमक-दमक में   लिपटी  ज़ीस्त,
काले   अँधेरे  फिर  ठहरेंगे  कहाँ



हर शै क़दमों में हाज़िर पल में,
मयस्सर  हुआ  है   बिहिश्त   यहाँ 



रब ने बनाया हो जिसका नसीबा,
"रत्ती"  कौन  रोकेगा  सब मेहरबां     



 शब्दार्थ
नातवाँ - कमज़ोर, हर सू = चारों तरफ
ज़ीस्त = जीवन, मयस्सर = उपलब्ध,
बिहिश्त = स्वर्ग