बुरा न मानो होली है
ये होली भी क्या होली है
चेहरे सब लाचार से
रोनक तो गुम हो गयी
लोग लगें बीमार से
ज़हरीले रंगों से भैया
अंगों को बहुत ख़तरा
बेचनेवाले मुनाफा चाहें
न मौत खरीदें बाज़ार से
इस होली में प्रेम नहीं है
छुपी नागिन वासना
जोर-ज़बरदस्ती से त्रस्त सब
और अटपटे व्यवहार से
नकली मावे की मिठाई से
मुंह मीठा न कराओ
रंग में भंग न हो जाये
गुड खिला दो प्यार से
मीठे शब्दों की चाशनी से
चीनी का स्वाद ले लो
सरकारी कड़वी नीतियों से घायल
दुखी महंगाई की मार से
होली के रंग चमकते रहते
महंगाई अगर न होती
भोली जनता बड़ी ख़फ़ा
निकम्मी सरकार से
राधा मोहन की होली देखो
श्रद्धा प्रेम की खुशबू आवे
ग्वाल-बाल, रसिक भक्त
विभोर अमृत की बौछार से
और कुछ दे नहीं सकते
शुभकामना स्वीकार लें
"रत्ती" भर संतोष सही
न गिला करो अपने यार से
Sunday, February 28, 2010
Monday, February 8, 2010
खता
खता
हम गल्तियाँ अक्सर रोज़ ही किया करते हैं,
ये भी सच है के दोष दूजे को दिया करते हैं
ये फितरत है, शरारत है या नादानी कोई,
सबक लेने की न सोच फिर गिला करते हैं
अब तलक ये तमाशा यूँ ही चलता रहा,
ज़िन्दगी को तमाशा बना के जिया करते हैं
कैसी-कैसी जंग सही ज़ख़्मी भी हुआ मगर,
मरहम न दिया न मरहम लिया करते हैं
सपनो की दूनियाँ में राजा ही बनते रहे,
हकीक़त ये के नोकरी दूजे की किया करते हैं
शराब में ऐसा क्या है इसके बिना रह नहीं सकते,
पैसा न भी हो पास तो मांग के पीया करते हैं
"रत्ती" लम्बी दूरियाँ खुद ही कम हो जाती हैं,
जब-जब हम अपने होटों को सिया करते हैं
हम गल्तियाँ अक्सर रोज़ ही किया करते हैं,
ये भी सच है के दोष दूजे को दिया करते हैं
ये फितरत है, शरारत है या नादानी कोई,
सबक लेने की न सोच फिर गिला करते हैं
अब तलक ये तमाशा यूँ ही चलता रहा,
ज़िन्दगी को तमाशा बना के जिया करते हैं
कैसी-कैसी जंग सही ज़ख़्मी भी हुआ मगर,
मरहम न दिया न मरहम लिया करते हैं
सपनो की दूनियाँ में राजा ही बनते रहे,
हकीक़त ये के नोकरी दूजे की किया करते हैं
शराब में ऐसा क्या है इसके बिना रह नहीं सकते,
पैसा न भी हो पास तो मांग के पीया करते हैं
"रत्ती" लम्बी दूरियाँ खुद ही कम हो जाती हैं,
जब-जब हम अपने होटों को सिया करते हैं
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