Tuesday, January 27, 2015

मन की आवाज़


मन की आवाज़
अच्छे सपनों को परवाज़ दीजिये
जो काम सोचा उसे पूरा कीजिये
कोई तुम्हारा नसीब नहीं बदल सकता
खुद कुआँ खोद के पानी पीजिये
ये शब के तारे कुछ पल ही चमकेंगे
ये अब्र भी थोड़ी देर को बरसेंगे
अपने हौसलों को ज़िंदा कीजिये
 
 
मुहोब्बत के साये में धोखा पाओगे
जो पास है तुम्हारे वो भी गवांओगे
घर से निकलो न इंतज़ार कीजिये
वफ़ा, जज़्बात की क़दर कोई न जाने
ज़माना ये ख़ल्क़त किसी की न माने
कभी "रत्ती" मन की भी सुन लीजिये
  

Thursday, January 22, 2015

सियासी लीडर

सियासी लीडर
 
क्या लीडर सच्चा होता है, अपनी अवाम का ।
या फिर भूखा दौलत का, नहीं किसी काम का ।। 
 
 
नक़ाब-पे-नक़ाब ओढ़ के, निकले अपने घर से,
बखूबी रोल अदा करे वो, शातिर बेईमान का ।
 
 
उनकी सियासी चालों से, हम तो नहीं वाक़िफ़,
खामोशियों में था इशारा, लोगों के क़त्लेआम का ।
 
 
 
मेरे ज़हन में बसी हैं, कई उलझनें उलझी,
मुझे भरोसा अपने खुदा, वाहेगुरु, प्यारे राम का । 
 
 
 
माना के सियासत में तो, सब होता है जायज़,
हर तबके की हिफाज़त, भरोसा दो जान का ।
 
 
ज़िन्दगी मुड़-मुड़ के "रत्ती", ले इम्तिहां हमारा,
क्या कोई दर बचा है, मोहब्बत का, ईमान का ।

Monday, January 19, 2015

अच्छे दिन

अच्छे दिन
अच्छे दिनों के सपने सब देखते हैं
अभी कल ही नेताजी ने कुछ सपने दिखाये
विकास दर गगन को छुआ दी
उन्नती की गाड़ी खड़ी है कहीं गैराज में
उसके टायरों में से
आशा की हवा भी निकल दी
बुरे दिनों ने काला चोला पहन के
अच्छे दिनों को अगवा कर लिया है
जीवन को तहस-नहस करके दबा दिया है
अश्रुओं की नमकीन धारा बढ़ायी
महंगाई, भ्रष्टाचार बड़े ठग
निकले बड़े आततायी
एक शीशा कहीं कोने में खड़ा
दिखा रहा है चहरे की रंगत
जवानी में झुर्रियां हैं या झुर्रियों में जवानी
नशे का शिकार युवा,
बेसुध क्या जाने - अच्छे दिन
अच्छे दिन किसी मदारी के बन्दर हैं
मनचाहा नाच नचाओ
हिचकोले खाते हुए कमर मटकाओ
मदारी के पास बढ़िया चाबुक है
बन्दर की पीठ पे जब-तब जड़ता है
गले में फाँस है बेचारा
दर्द से कहराता है, दांत भींच के डरता है
संसद में सफेद पोशों की भीड़ ने
पैंसठ सालों से बेहिसाब
सारा माल-टाल खाया
दाद देनी पड़ेगी, एक भी डकार न आया
भाई मेरे,
अच्छे दिन तो नेताओं के आये
भारतवासी बाबाजी का ठुल्लू पाये
अच्छे दिन अख़बारों में,
मिडिया में देखे सुने
सच तो ये है अच्छे दिन लोगों के
ज़हन में रहते हैं, रहेंगे, सारी उमर
अपराधी बन कर
काश के अच्छे दिनों के बीज मिलते
खेती करके उपजे दानों को
सारे विश्व में बांटता .....