Tuesday, May 27, 2008

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा

होड़ पड़ी धरा पर
समेट ले़ जग को
अपनें आँचल मे
हाथ तो निरन्तर लगे रहे
चौबीसों घण्टों कुछ पाने को
लक्ष्य को सामनें रख
लम्बी गलियों में चलते रहे
काश कि गगन को छू लेते
लालसा भी इतनी के
पानी से प्यास तो बुझे पर
ये मृगतृष्णा टस से मस नहीं होती
आखिरी साँस तक पीछा नहीं छोड़ती
ये मृगतृष्णा है, लालसा है, क्या है
शायद भ्रम हो गया है
एक ऐसी धुन्धली परछाई
जिसमे मानव भटक जाता है
सब भूल जाता है
बिखर जाता है .....

"अन्धेरे से उजाले तक"

"अन्धेरे से उजाले तक"

रात बहोत बाकी दूर सहर तक चलना है,
अंधेरों से उजालों तक का सफर करना है

तमाम परेशानियाँ, उलझनें खड़ी राहों में,
ज़िन्दगी को हर क़दम फूँक के धरना है

काफिला तो चला वक़्त पे उस रोज़ भी,
हम ही तय न कर पाये रुकना या चलना है

तरंगे ले उड़ी फलक़ पे ख्यालों को जब भी,
पतंग कटे न सपनों की हमें संभलना है

अभी सर्द हवाओं ने उजाडे़ हैं बाग मेरे,
अव्वल तो ज़ख्मों को मुझे भरना है

खावाहिशों नें मेरी जानिब अपना रुख किया,
उनके बद इरादों को सिरे से बदलना है

सरहद की जंग छोटी जीस्त की बड़ी,
फौजी एक बार मरे हमें रोज़ ही मरना है

"रत्ती" हम तो मुसाफिर मज़िल से वाकिफ,
राह के ख़तरों से हमको नहीं डरना है

Friday, May 23, 2008

नारी

नारी

औरत तो अपना फर्ज़ खूब निभाती रही,

और ये दुनियाँ मासूम पर ज़ुल्म ढाती रही

न मालूम कितनी कुर्बानियां दी हैं अब तलक,

वो बेक़सूर होकर भी ताउम्र सज़ा पाती रही


बेटी, माँ, सास का किरदार सलीके से निभाया,

इनाम तो न हुआ हासिल ज़िल्लत ही पाती रही


उसे इल्म ही न था कुछ सीखने समझने का,

यही एक कमी थी दुनियाँ बेवक़ूफ बनाती रही


कौन कहता है औरत कमज़ोर है, लाचार है,

मिसाल है झांसी की रानी दुश्मनों को डराती रही


चान्द को छूनें वाली सुनीता भी मिसाल बनी,

ऐसी साइंसदाँ को दुनियाँ सर पे उठाती रही


जो गुज़री वो तवारीख़ है आज समां तेरे हाथों में,

नसीब भी बदल दूँगी नये पलान बनाती रही


नारी ममता, लाड, प्यार की सच्ची देवी है

"रत्ती" इमानदारी से अपना काम निभाती रही

Wednesday, May 21, 2008

पप्पू पास हो गया

पप्पू पास हो गया

बिगडा काम रास हो गया,
पप्पू पास हो गाया


कौन है इतनें विषय बनाता,
बच्चों को है बडा डराता,
विषयों से हमारा क्या है नाता,
पढाई को कर दूं टाटा,
पढाई न हुई त्रास हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

गणित तो समझ नहीं आता,
गुणा-भाग में ही उलझ जाता,
मुश्किल से परचा पूरा हो पाता,
सवाल तो सवाल ही रह जाता,
तीन घण्टा यूं पास हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

अंग्रेजी कि भी अपनी कहानी,
मर जाये अंग्रेजों की नानी,
खुद चले गये छोडी परेशानी,
शिक्षा विभाग भी करे मनमानी,
आज फिर निराश हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

इतिहास भूगोल का परचा सारा,
पल्ले न पडे क्या करे बिचारा,
सवाल, गांधीजी को किसनें मारा,
जवाब, मैंने नहीं मारा,
सोचते-सोचते बुरा हाल हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

विग्यान भी मुझको नहीं सुहाता,
अच्छा होता पर्चा लीक हो जाता,
मेरा काम आसान हो जाता,
पासींग मार्क तो जुटा ही पाता,
विग्यान गले की फास हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

पापा को सारा हाल सुनाया,
एक पर्चा पूरा न हो पाया,
पापा का भी जी घबराया,
पापानें मास्टर को पटाया,
"रत्ती" चुटकी में अपनें आप हो गया,
धक्के से पप्पू पास हो गया

Tuesday, May 20, 2008

आज का भगवान

आज का भगवान
मैं हूँ मैं जो कहता हूँ
वह करके रहता हूँ¡
अगर विश्वास न हो तो,
कुछ बातें कहता हूँ
मुझे पाने के लिये लोग
बड़े से बड़ा जुर्म किये जाते हैं

सच्चाई से कुछ नहीं होता,
मेरे लिये झूठ पर झूठ बोले जाते हैं
सिर्फ मेरे ही बल पर सारी उलझनों को हल कर
कुछ तो पिस्ते बादाम खाते हैं
अब तो बुरा हाल है भईया
दो वक़्त की रोटी तो दूर
दाने-दाने को तरस जाते हैं
सरकारी हो या ग़ैर सरकारी

सभी वर्गों के कर्मचारी मुझे उपयोग में लाते हैं
जिसके कई नाम हैं
जैसे दान, चायपानी, मस्का, रिश्वत,
भाई ख़ाली रोटी से तो पेट नहीं भरता पर,
मेरे लिये ज़रुरत पड़े तो
लोगों का ख़ून तक पी जाते हैं
मैं जिसके साथ रहूँ

जिंदगी उसकी निराली है
हर सुबह को वह होली खेले
हर शाम उसकी दिवाली है
मैं जिससे रुठ जाऊं
चाल शराबी वाली है

खाने को दिल करे कभी
कुछ पर जेब पड़ी ख़ाली है
इसीलिये कहते हैं यारो

मैं मैं हूँ मैं जो कहता हूँ
वो करके रहता हूँ दुनिया को बस में करता हूँ
अगर कोई शक हो दिल में तो अंत में
ये कहता हूँ आज का भगवान है बड़ा महान
पहले तो वो उपरवाला रब्ब था
लेकिन अब मैं हूँ श्रीमान
नगद है भगवान भइया .....
नगद है भगवान भइया .....

काला मन

"काला मन"
मेरे मन के भीतर दो आंखों ने
झांकना शुरू किया
तो वो आश्चर्य चकित रह गयी

मन मन खुला का खुला रह गया
कितना गोरा है तन
उससे कई गुना ज्यादा काला है मन
कई जन्मों की धुलाई के बाद भी
असंभव सा लगता है कि वो सफेद होगा
नवीन लगेगा
मन के साथीयों से हुआ
आमना-सामना
इस मन के गुण और खूबियाँ बतलाऊं
सावधान हंसना मत ऐसा ही होता है मन

सुनो झूठ, फ़रेब, चोरी, मक्कारी, होशियारी,
चार सौ बीस, धोखेबाज
ये सब एक ही घर में डेरा डाले पडे़ रहते हैं
और मन इनका गुलाम
ये कुछ डरावनें लोग देखे
मेरे मन में
उन आंखों ने भयभीत हो मुख से निकल गया

हे! भगवान ऐसा होता है मन
हजार ऐबो से युक्त
सचमुच काला है
सचमुच काला है .....

Monday, May 19, 2008

प्रेरणा

प्रेरणा तुम न होती तो, मेरा अस्तित्व न होता
मैं किसी आम आदमी की तरह रह रहा होता
मेरे दिल में जो सपन्दन होती है,
बुद्धि का विकास होता है,
नये-नये विचार उत्पन्न होते हैं,
मुझे ऊर्जा मिलती है,
तो एक नयी रचना जन्म लेती है.
लोग शायद तुम से परिचित न हों
लेकिन तुम मेरी कल्पना को उत्तेजित कर,
मुझे लिखनें पर मजबुर कर देती हो
राह चलते-चलते कुछ शब्द अगर,
मेरी बुद्धि में घर कर गये
तो मैं विचलित हो जाता हूं,
जब तक पुरा न कर लूं उसे।

प्रेरणा तुम मेरे लिये एक बीज हो,
जिसे मैं बोता हूँ यादों की भूमि में
और मेहनत से कलम का हल चलाता हूँ
शब्दों का खाद-पानी डाल कर,

एक नयी रचना, नन्हें पौधे का, सपना सजाता हूँ
लो, देखो, प्रेरणा अब बड़ी हो गयी है,

विशाल वृक्ष का रुप धर लिया है
मई, सुंदर, शब्दों के फूलों को,
मैंने चुन लिया
रचना भी एक मीठा फल है,
जिसे देख मेरे मुंह में पानी भर आया
"रत्ती" मैं ये मीठा आम, मेरी रचना,
जो कभी प्रेरणा थी,
सबके साथ बाँट कर खाना चाहता हूँ .....