Monday, December 1, 2008

बेचारा मदन



बेचारा मदन


इस ढलते जीवन की सांझ की बेला में,


इश्वर कृपा के सहारे बैठा,


मदन कभी गगन तो, कभी धरा को ताकता,


खोपडी में धसी लखों चिन्ताओं की गोलियाँ,


झरने की भाँती गिरते आँसू, अस्वस्थ जर जर शरीर,


साहस की कमी खलती है,


ग़रीबी के श्राप से पीड़ित, सुख-सुविधाओं से वंचित,


फटी झोली में सुनहरे कल की आशा


और वर्तमान के शीशे पर,


धूल ही धूल .....सब कुछ फीका .....


धुन्धला .....


और निराश ख़ुद से बातें करता बड़बड़ाता मदन,


मेरे जो आंसू बहे उनकी गिनती नहीं,


हर त्रासदी को झेलता जीवन ख़तरे में,


न कम होनेवाली लाइलाज पीड़ा,


प्रश्नों के उधेड़बुन में फंसा,


किसी अपराधी की भांति, सख्त दंडात्मक करवाई का शिकार,


शरीर की दशा बहुत कुछ कहती है,


फांके ही फांके, अन्न के दाने मोतियों से भी महंगे लगते,


रूक-रूक के आवागमन करते श्वास,


गले से निकली आवाज़ कर्कश हो चली,


फटी बांसुरी की तरह,


आखों के गड्ढों में सुखी पुतलियाँ,


जैसे दीये में तेल की कमी,


शरीर हड्डीयों का ढांचा, कंकाल को ढोने में असमर्थ,


चेहरे की अनगिनत झुर्रियों को देखो,


मकड़ी का जाल,


क्या मैं बच पाऊंगा ?


भविष्य में होनेवाली घटनाओं का आभास हो रहा है,


मैं जब कभी भूले से नदिया किनारेवाले,


मरघट के पास से गुज़रता हूँ,


मुझे देख के वो पुकारता है,


हंसता है, मुझे चिढ़ाता है,


इशारे से बुलाता है कभी-कभी,


मदन आ जाओ, मदन आ जाओ,


तुम्हारी सारी चिन्ताओं का समाधान मेरे पास है,


आओ मेरी आगोश में समा जाओ,


मदन ..... नहीं ..... नहीं .....मेरे बच्चे .....


मेरी पत्नी ..... मेरा परिवार .....मेरा घर .....


मेरे खेत ..... नहीं ..... नहीं ..... नहीं .....

Monday, November 24, 2008

याद रहा


याद रहा

तुझसे नज़रें चुराना याद रहा,

वो गुज़रा ज़माना याद रहा,


मैं ग़म में सब भूल गया था,

उसका मुस्कूराना याद रहा,


वो शम्मां रातभर जलती रही,

करवटें बदल के सो जाना याद रहा,


गै़रों की ज़ुबां से तल्ख़ फूल गिरे,

उन कांटों का चुभ जाना याद रहा,


क्या दुआओं में असर है बाकी,

तेरे दर पे सर झुकाना याद रहा,


मयकशी ही एक दवा थी मेरी,

इसीलिये मैखाना याद रहा,


सुखे लब लिये मैख़ाने पहुंचा,

साक़ी का रूठ जाना याद रहा,


सब बलाओं से है शिकवा मेरा,

ज़िन्दा लाश बनाना याद रहा,


वादा करना और न निभाना,

ये दस्तूर पुराना याद रहा,


"रत्ती" सीने की तह में दर्द भरे थे,

खुशीयाँ न मनाना याद रहा,

Friday, November 14, 2008

उपरवाला


उपरवाला

कोई सुन्दर सलौना, कोई कुरुप है,

अपनी-अपनी किस्मत है, अपना-अपना रुप है


तेरा ही अक्स है, तेरी ही खुशबू है सब में,

हर खु़बसूरत चीज़ तो, तेरा ही रुप है


हर वक़्त हर शै में, हरकत जो हो रही,

एक अहसास और ताक़त, ये अनोखा सुबूत है


इन नज़रों से न देखा, पर दिलों में बसता है,

इस बात का यकीं है, हमारा रिश्ता अटूट है


अमीर-ग़रीब के फासले, मेरी समझ से परे,

कोई खाने को मोहताज, कोई खाता मलाई दूध है


कहीं ज़लज़ले आ रहे, कहीं बंजर ज़मीं,

कहीं ठंडी हवा के झोंके, कहीं कड़ी धूप है


वो सरमायादार सबका, मालामाल करेगा तुझे भी,

"रत्ती" दो क़सीदे तू भी पढ़ दे, वो पिता तू पूत है


Wednesday, November 12, 2008

ओबामा


ओबामा

ये नाम हो गया है जाना पहचाना,

अरे वही अपना राष्ट्रपति ओबामा

आ गयी है हाथ अमेरिका की कमान,

उपरवाले के बाद सब लेंगे तेरा ही नाम

अमेरिकावालों ने क्या घोल पिलाया,

सब नेताओं ने बधाई संदेश भिजवाया

पहले रटते बुश-बुश अब रटते ओबामा,

देखिये जनाब, कैसे करवट बदल रहा है ज़माना

छोटे बडे़ सब लोग तुझ पे फिदा हो चले,

शायद अपनी रूकी गाड़ी भी, अब चल निकले

अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी पर ले आओ,

ओबामा अल्लादीन की जादुई छड़ी घुमाओ

जातिवाद, गोरे-काले का भेद मिटना,

इंसानियत का सच्चा परचम लहराना

आसमां से फरिश्ते भी तुमको देंगे दुआए,

दिल से दिल मिलेंगे पुरी होंगी सब कामनाएं

"रत्ती" एकता का ही पैग़ाम देते जाना,

मंज़िल तुम्हारे क़दम चूमेगी ओबामा

Thursday, October 9, 2008

"चलते रहे"


"चलते रहे"
उनकी अदाओ पे हम मरते रहे,

रोज़ दहलीज़ पे सजदे करते रहे


एक इंतज़ार बेक़रारी बढाता रहा,

सुबह से शाम पलकें झपकते रहे


मेरे दिल में बहोत हसरतें उठी,

मेरी नींदों में सपने बन उतारते रहे


वो सबा मुसर्रत थी तेरा लम्स पा गयी,

हम मासूम चेहरा लिए तरसते रहे


जवानी पे गुमान होना लाजिमी था,

वो ठुमके लगा-लगा के चलते रहे


कुछ लम्हे ऐसे भी यादगार बने,

हम उनको वो हमको छलते रहे


आगाज़-ऐ- इश्क में अंजाम मालूम न था,

"रत्ती" बेफिक्र मंजिल पे बढ़ते रहे


शब्दार्थ

सबा = हवा, मुसर्रत = खुश, लम्स = स्पर्श,

आगाज़-ऐ- इश्क = प्यार की शुरुवात


Thursday, September 11, 2008

गुरु ( मुर्शिद )


गुरु ( मुर्शिद )



मेरा दिल मिले दिलदार मिले,
एक चाहत है तेरा प्यार मिले
दुनियाँ के नज़ारे देखे बहोत,
बस मुझे तेरा दीदार मिले
मैं सफर में रहूँ या मकां में,
तेरी याद ज़हन में बरक़रार मिले

तेरे लिये मसरुफ रहूँ, खिदमत करूँ,
भले दुनियाँ में लानत हज़ार मिले

जो सजदा करते, इबादत करते,
उनकी होती फतह न हार मिले

तुम मेरे मुर्शिद हो, खु़दा हो,
ये फख्र मुझे सरकार मिले

तेरे क़रम, तेरे एहसान बहोत "रत्ती"
ऐसे रहमदिल परवरदीगार मिले

Monday, September 1, 2008

रिश्ते

"रिश्ते"
वो बोले तुम से मेरे सारे रिश्ते नाते हैं,

मुझे वो शोला भी शबनम नज़र आते हैं


दो तरफा ज़ुबां का चलन जान गये हम,

मैं दूरी रखना चाहता हूँ वो क़रीब आते हैं


दौलत-ओ-हुस्न खींच लाता है सबको,

वरना कौन किसी को अपना बनाते हैं


पलकों पे बिठाने का इरादा था मेरा,

वो हर बार ही हमें दगा दे जाते हैं


रिश्ते क़ायम रखनें की नसीहत देते हैं,

रिश्ते जोड़नेवाले, तोड़ने की जहमत उठाते हैं


ख़ून के रिश्ते पे यक़ीं था भरोसा था "रत्ती"

दौलत की ख़ातिर बाप-बेटे उलझ जाते हैं

लहर

लहर
मैं लहर हूँ
उठती हूँ गिरती हूँ
यही मेरा काम है
इसीसे मेरा नाम है
हर उठती तरंग मेरी पहचान है
गिरने का मज़ा, मिलने का मज़ा,
निराला है मेरा अंतरमन वो ही जानें,
गिरने और मिटनें में पीड़ा तो है,
पीड़ा में छुपा एक जीवन नया,
आना-जाना, परिवर्तन,
प्रकृति का नियम,
नियम में बंध कर ही,
कार्यों को नया क्रम मिला,
नहीं तो सब काज आधे-अधूरे रह जाये,
एक दूसरे की बाट जोहते तकते रह जाए
आस-निरास की उधेड़बुन में,
जीवन नैय्या, तट पर ही न पहुँच पाती,
लहर साँसों को नहीं गिनती,
वो निरन्तर शक्ल दिखा कर लुप्त हो जाती है,
फिर चली आती है ..... फिर लुप्त हो जाती है .....
फिर .....

Sunday, August 31, 2008

मुझे जीने दो

मुझे जीने दो

मेरा जीवन, जीवन नहीं,

मेरी अपनी इच्छा का होना, न होना एक बराबर है,

और मेरी पीड़ा की चिंता कोई क्यों करे,

ये सुंदरता, ये सुगंध ही मेरे हथियार हैं,

जिनके बलबुते पर, मैं मानव को ही नहीं,

भंवरे, तितलियाँ और अन्य कीट-पतंगों को भी,

अपनी ओर आकर्षित करता हूँ,

सबके मन को मोह लेता हूँ ,

मानव मुझे चाहता है लेकिन,

उसका आचरण किसी कसाई से कम नहीं,

मेरी साँसे सुई की नोक से रोक कर,

अधमरा जीने को मजबूर करते हैं,

कितने स्वार्थी हैं सब,

दूसरों को प्रसन्न करने के लिये,

मेरे जीवन की बली देते हैं,

कभी किसी के गले का हार बना,

कभी पत्थर की मूरत के चरणों की शोभा,

किसी शवेत टोपीधरी मंत्री को भेंट,

स्वागत का पुष्प गुच्छ

और किसी मृत शरीर को ढकनेवाली,

फूलों की चादर,

और फिर काम पूरा होते ही,

कूडे़ के ढेर में .....,

हर फूल का भाग्य भी,

मनुष्य जैसा ही है,

ईश्वर ने हर किसी को,

उसके कर्मों के अनुसार फल दिया है,

मैं एक कोमल फूल हूँ,

जब तक कुम्हला न जाऊं,

तब तक मुझे डाल से न तोड़ें,

ये मेरी आप सब मनुष्यों से बिनती है,

फूल तोड़ने पर ऐसा प्रतीत होता है,

जैसे किसी बच्चे को माँ से छीन लिया हो,

मैं नन्हा सा फूल ही सही,

मुझे भी जीने का अधिकार है,

मेरा ये अधिकार न छीनो मुझसे,

मैं भी स्वतंत्र रहना चाहता हूँ ,

मुझे जीने दो ..... मुझे जीने दो .....,


Thursday, August 7, 2008

गुज़ारिश


गुज़ारिश

शब-ए-फिराक़ में दीप जला दो,

एक भटके हुए को राह दिखा दो


तारीक-ए-ग़म का असर रहेगा,

ज़रा सोये उजालों को जगा दो


अहल-ए-वफ़ा से पूछो धड़कनो का,

टूटे न सांसें मेरी न और सज़ा दो


वक़्त-ए-इम्तिहान में नतीजा बुरा है,

वक़्त रहते हमें निजात दिला दो


मेरे ग़म में अब्र भी बरसते रहे मगर,

उस संगदिल को कोई मोम बना दो


तुम्हारा प्यार ही फक़त मेरा जुनू है,

अपनी बांहें फैला दो कुछ मज़ा दो


वो हमपियाला, हमनिवाला, हमराह भी,

"रत्ती" गुज़ारिश करे न और अब दगा दो

शब्दार्थ

शब-ए-फिराक़ = विरह की रात, तारीक-ए-ग़म = शोक का अंधकार

अहल-ए-वफ़ा = प्रेमी लोग, वक़्त-ए-इम्तिहान = परीक्षा का समय

अब्र = बादल, संगदिल = पत्थर, हमपियाला, हमनिवाला = मित्र

Monday, August 4, 2008

नन्ही कली


नन्ही कली

यौवन की दहलीज़ पर अक़्सर क़दम बहक जाते हैं

और जवानी सर चढ़ कर बोलती है

मनमानी करती है

कुछ क्षणिक सुख की अनुभूति होती है

पश्चात मुसीबतों को आमंत्रण

जवानी की एक भूल, वो लहरों का संगम

जिसमें युगल अंधे होकर सीमाओं को लांघ जाते हैं

नतीजा नवजात की उत्पति

फिर समाज का भय, इज्ज़त नीलाम होने का डर

ये ड्रामा नहीं, फिल्मी कहानी नहीं, सच्चाई है

एक माँ घुप अंधेरे में, आधी रात को निकलती है

एक बदबूदार कूडे के डब्बे में

अपने कलेजे के टुकडे को फ़ेंक कर

छूटकारा पा लेती है

क्या होगा उस नन्हीं सी कली का ?

देखिये, माँ के मुंह फेरते ही

भिनभिनाती मक्खियों ने स्वागत किया

और मूषक महाराज क्यों पीछे रहते

उन्होंने अपनी जिव्हा को पवित्र किया

चोंच से लहू-लूहान किया नवजात को

आज महभोज मिला कूडे़ के ढेर में

भला हो उस राहगीर का

कानों में दर्द भरी आवाज़ सुनकर

वो कूडे़ के ढेर में बच्चे को देखकर

आश्चार्य चकित हो गया

वो फरिश्ता बन कर आया था

उसे अस्पताल ले गया

हम कितने कठोर दिलवाले हैं

माँ का ये रुप इज्ज़त के क़ाबिल नहीं

वो पिता भी कम दोषी नहीं

पाप का भागीदार है

आज ममता से भरा हुआ दिल

चट्टान में परिवर्तित हो गया है

माँ तुम्हें सौगन्ध है,

तुम जहाँ कहीं भी हो, वापिस आ जाओ,

मुझे बचाओ, तुम्हारे बिना मैं जीवित नहीं रह सकता

तुम्हारे जीवित रहते लोग मुझे यतीम कहते हैं

ग़ल्ती माँ -बाप की है

सज़ा नन्हीं कली को क्यों ?

बच्चे को क्यों ?

महंगाई



महंगाई


बडे सयाने कह गये, इसे मीठा ज़हर बताये हैं,

महंगाई ने हम सबके, चेहरे खुश्क बनाये हैं


तवंगर अपना रोवे, मुफलिस भूखा सोवे,

आज दुनियावालो ने, ग़म के गीत गाये हैं


जीना हुआ दुश्वार सभी का, सबकी एक कहानी है,

महंगाई के भूत ने देखो, हर शै पे पेहरे लगाये हैं



जमाखोरी, घूसखोर का, हुआ था पहले संगम,

उनके नालायक बेटे ने, चूल्हे सबके बुझाये हैं



उम्र तो अपनी रफ़्तार से, बढती ही चली जाये,

महंगाई जो बढ गयी तो, कम न होने पाये है



महंगाई तो दुश्मन का, बडा ज़ालिम बेटा है,

हर शख्स के सर पे उसनें, डन्डे बहोत बरसाये हैं



बेबस ज़िन्दगी कोस रही, उस उपरवाले को,

दो निवाले सुख के नहीं, आज तलक खाये हैं



ख़ुदा कहे कोई मुझको, न देना इल्ज़ाम,

गुनाह तुम्हारे सवाब तुम्हारे, वही सामने आये हैं



यारब करिश्मा कर, "रत्ती" पत्थर हज़म करे,

रोटी से निजात मिले, मैंने हाथ बहोत फैलाये हैं

शब्दार्थ
तवंगर= अमीर, मुफलिस= गरीब, दुश्वार = कठीन,

सवाब =पुण्य, निजात =छुटकारा

Thursday, July 3, 2008

चाँद



चाँद ( गीत )


चाँद तारों की रौशनी में नहाने लगा
रौनक बढ़ती गयी चमचमाने लगा
अकेला सफ़र में चला जा रहा था
किसी ने आवाज़ दी मुस्कुराने लगा
शरारत-शरारत मस्ती ही मस्ती
ठहर गये हम भी नज़र नहीं हटती
नाज़-ओ-नख़रे दिखाने लगा
किसी ने आवाज़ दी .....

लुका-छिपी खेलने में तुमको मज़ा आता है
क्यों बादलों के आँचल में छुप जाता है
मुस्कूरा के बहाने बनाने लगा
किसी ने आवाज़ दी ,,,,,
अन्धेरी रातों के बदले दिन में चले आओ
हमसे दोस्ती करके दूरियाँ मिटाओ
वो इशारों-इशारों में समझाने लगा
किसी ने आवाज़ दी .....

हमने पूछा अपना तारुर्फ तो कराओ
बहोत हंसी हो अपना नाम तो बताओ
बोला "रत्ती" तुम अजनबी हो दूर जाने लगा
किसी ने आवाज़ दी .....

Tuesday, July 1, 2008

प्रकृति


प्रकृति

प्रकृति तुम्हारा स्वरुप, तुम्हरी सुंदरता पर,

सारा जग मोहित हो जाता है, प्रसन्न हो जाता है,

तुमने हरियाली का परचम बखूबी लहराया,

विश्व के हर कोने में, लेकिन कोई भी देश,

तुमसे प्यार करता हो, तुम्हें चाहता हो,

तुमसे मित्रता करना चाहता हो,

नहीं, कोई नहीं चाहता,

मित्रता का पाठ हमें विद्यालय में पढ़ाया गया था,

शायद हम उसे भूल गये हैं,

प्रकृति संपूर्ण मानव जति से नाराज़ है, दुखी है,

बादलों को देखिये वो आवारा हो चले हैं,

मनमानें ढंग से गरजते हैं, बरसते हैं,

खेत में जब फसलों को पानी चाहिये,

उस समय फसलें बिना पानी के ही दम तोड़ती हैं,

नतीजा अनाज का अभाव, गगन छूती कीमतें,

ढेर सारी समस्याओं का जन्म,

हम नित्य ही समाचार पत्रों में सुर्खियाँ पढ़ते हैं,

फलां-फलां देश में भूकंप आया,

किसी दूसरे देश में बाढ़ आ गयी,

जनमाल की भारी क्षति हो गयी,

इसका कारण क्या है हमनें सोचा ही नहीं,

समुद्रतल से तेल के भण्डार को,

डकैतों की भांति लूट लिया,

गगनचूम्बी इमारतों में कांक्रीट का जाल,

ऐसी परिस्थितीयों में समुद्र देवता कहाँ अपने पांव पसारे,

कारखानों की चिमनीयों से निकलता धुंआ,

वाहनों का धुंआ - ये किसकी देन है?

बिमारियों और संकटों को आमंत्रण किसने दिया?

प्रकृति और मानव के बीच बढती दूरी,

ये असंतुलन संपूर्ण मानव जाति का विनाश कर देगा,

प्रलय से बचनें का कोई मार्ग खोजना होगा,

प्रकृति कभी किसी के विरुद्ध अन्याय नहीं करती,

वह हमारे जीवन की रक्षा करती है,

हमारे सवास्थ्य को तंदुरुस्त रखने का सदा, प्रयत्न करती है,

लेकिन तुम सोचो मानव, निर्णय तो हो के रहेगा,

तुम दंड के भागी हो, दंड तो मिलेगा,

अवश्य मिलेगा और यही नहीं,

उसका मूल्य भी चुकाना होगा अपने प्राण देकर .....

Sunday, June 29, 2008

बात न करो

बात न करो


लामज़हबों की दुनिया में मज़हब की बात न करो,

वो तो ख़ुदा को नहीं बख्शते इंसां की बात न करो


कौन सुनेगा फरियाद किसी की मसरुफ जो ठहरे,

जब दौर-ए-गर्दिश हो इंसाफ की बात न करो


मेरी दहलीज़ पर हंगामें डेरा डाले बैठे रहे,

दौर-ए-नाशाद में शाद की बात न करो


जिस्म का मर्ज़ और दिल का दर्द बताऊँ किसे,

उसने कहा मेरी सुनो अपनी बात न करो


दुनिया बेरहम-ओ-बेरुखी के क़ायदे पढ़ती है,

ऐसे में तहय्युर-ओ-तज़वीज़ की बात न करो


कल नज़र उठा के देखा तदबीर तो मौजूद थी,

मनसब ठीक न हो उम्मीद की बात न करो


"रत्ती" घिर गये हो तुम सेहरा के जंगलों में,

रेत ही मयस्सर होगी पानी की बात न करो

शब्दार्थ-

लामज़हब = नस्तिक, नाशाद = दुख,

मनसब = लक्ष्य, मसरूफ = व्यस्त शाद = सुख,

तहय्युर = बदलाव, सेहरा = मरुस्थल तज़वीज़ = राय।

मयस्सर = उपलब्ध

Wednesday, June 18, 2008

दिल

दिल
जैसा भी है हमारा दिल ही तो है,
दिल ही तो है, बेचारा दिल ही तो है।
दिल पिघलने की चीज़ होती तो,
कब का पिघल गया होता,
ये तो शोला है, आग का गोला है,
ख़ुद जलता है, दूसरों को जलाता है,
बिना चिन्गारी के ही भड़क जाता है,
इतना ताप तो सूरज में भी नहीं,
ऐसा बर्फ का टुकडा़ देखा है कहीं,
क्या कहूँ ये तो भोला है, मासूम है,
कभी किसी से प्यार तो,

किसी से तक़रार करता है,
किसी ने ठेस लगायी तो,
अन्दर ही अन्दर सिसकीयाँ भरता है,
जैसा भी है, हमारा दिल ही तो है।
दिल ही तो है .....

Monday, June 16, 2008

जप हरि नाम - भजन

जप हरि नाम - भजन

जप हरि नाम तू प्यारे,
कमाई कर ले तू प्यारे।
जप हरि नाम .....

रतन जो राम-नाम का,
मीरा ने था कभी पाया।
रतन जो राम-नाम का,
तुलसी ने था पाया।
उसी पथ पर चलो तुम भी,
न भटको ओर कही प्यारे।
जप हरि नाम .....

है दुर्लभ मानुष देही,
न करना तू ज़रा देरी ।
है दुर्लभ मानुष देही,
न करना तू हेरा - फेरी ।
भूला दे जो समय बीता,
बचा जो भज ले तू प्यारे।
जप हरि नाम .....

गुरु की शरण में तू जा,
जीवन सफल कर अपना।
गुरु से प्रेम रस पाकर,
जीवन धन्य कर अपना।
वो मालामाल कर देगा,
"रत्ती" तू भी भज प्यारे।

जप हरि नाम तू प्यारे,
कमाई कर ले तू प्यारे।

Monday, June 2, 2008

अच्छा लगता है

अच्छा लगता है

ज़रा-ज़रा ख़ार, थोडा़-थोड़ा प्यार अच्छा लगता है ।

तेरा रुठना, मेरा मनाना, अच्छा लगता है।

तेरा दूर रहना, मेरा पास आना, अच्छा लगता है।

कभी नख़रा तो, कभी बहाना, अच्छा लगता है।

तेरा नज़रें चुराना, मेरा नज़रें बचाना, अच्छा लगता है।

कुछ सुनना, कुछ सुनाना, अच्छा लगता है।

तेरा गिले, मेरा शिकवे टकराना, अच्छा लगता है।

तेरा खट्टी बातें, मेरा मीठा बनाना, अच्छा लगता है।

तेरा नज़रों से, मेरा इशारों से बुलाना, अच्छा लगता है।

तेरा मुस्कुराना, मेरा खिलखिलाना, अच्छा लगता है।

तेरा भूलना, मेरा याद दिलाना, अच्छा लगता है।

तेरा सपनें देखना, मेरा सपनें सजाना, अच्छा लगता है।

तेरा जीतना, मेरा हार जाना, अच्छा लगता है।

तेरी सरगम, मेरा गीत गाना, अच्छा लगता है।

तेरा ज़ख्म देना, मेरा मरहम लगाना, अच्छा लगता है।

तेरा ग़मों को पकाना, मेरा ग़मों को खाना, अच्छा लगता है।

तेरा हुक्म, मेरा उसे बजाना, अच्छा लगता है।

तेरा प्यार देना, मेरा प्यार पाना, अच्छा लगता है।

कुछ समझना, कुछ समझाना, अच्छा लगता है।

कुछ सीखना, कुछ सीखाना, अच्छा लगता है।

"रत्ती" प्यार का बदला, प्यार नज़राना, अच्छा लगता है।

Tuesday, May 27, 2008

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा

होड़ पड़ी धरा पर
समेट ले़ जग को
अपनें आँचल मे
हाथ तो निरन्तर लगे रहे
चौबीसों घण्टों कुछ पाने को
लक्ष्य को सामनें रख
लम्बी गलियों में चलते रहे
काश कि गगन को छू लेते
लालसा भी इतनी के
पानी से प्यास तो बुझे पर
ये मृगतृष्णा टस से मस नहीं होती
आखिरी साँस तक पीछा नहीं छोड़ती
ये मृगतृष्णा है, लालसा है, क्या है
शायद भ्रम हो गया है
एक ऐसी धुन्धली परछाई
जिसमे मानव भटक जाता है
सब भूल जाता है
बिखर जाता है .....

"अन्धेरे से उजाले तक"

"अन्धेरे से उजाले तक"

रात बहोत बाकी दूर सहर तक चलना है,
अंधेरों से उजालों तक का सफर करना है

तमाम परेशानियाँ, उलझनें खड़ी राहों में,
ज़िन्दगी को हर क़दम फूँक के धरना है

काफिला तो चला वक़्त पे उस रोज़ भी,
हम ही तय न कर पाये रुकना या चलना है

तरंगे ले उड़ी फलक़ पे ख्यालों को जब भी,
पतंग कटे न सपनों की हमें संभलना है

अभी सर्द हवाओं ने उजाडे़ हैं बाग मेरे,
अव्वल तो ज़ख्मों को मुझे भरना है

खावाहिशों नें मेरी जानिब अपना रुख किया,
उनके बद इरादों को सिरे से बदलना है

सरहद की जंग छोटी जीस्त की बड़ी,
फौजी एक बार मरे हमें रोज़ ही मरना है

"रत्ती" हम तो मुसाफिर मज़िल से वाकिफ,
राह के ख़तरों से हमको नहीं डरना है

Friday, May 23, 2008

नारी

नारी

औरत तो अपना फर्ज़ खूब निभाती रही,

और ये दुनियाँ मासूम पर ज़ुल्म ढाती रही

न मालूम कितनी कुर्बानियां दी हैं अब तलक,

वो बेक़सूर होकर भी ताउम्र सज़ा पाती रही


बेटी, माँ, सास का किरदार सलीके से निभाया,

इनाम तो न हुआ हासिल ज़िल्लत ही पाती रही


उसे इल्म ही न था कुछ सीखने समझने का,

यही एक कमी थी दुनियाँ बेवक़ूफ बनाती रही


कौन कहता है औरत कमज़ोर है, लाचार है,

मिसाल है झांसी की रानी दुश्मनों को डराती रही


चान्द को छूनें वाली सुनीता भी मिसाल बनी,

ऐसी साइंसदाँ को दुनियाँ सर पे उठाती रही


जो गुज़री वो तवारीख़ है आज समां तेरे हाथों में,

नसीब भी बदल दूँगी नये पलान बनाती रही


नारी ममता, लाड, प्यार की सच्ची देवी है

"रत्ती" इमानदारी से अपना काम निभाती रही

Wednesday, May 21, 2008

पप्पू पास हो गया

पप्पू पास हो गया

बिगडा काम रास हो गया,
पप्पू पास हो गाया


कौन है इतनें विषय बनाता,
बच्चों को है बडा डराता,
विषयों से हमारा क्या है नाता,
पढाई को कर दूं टाटा,
पढाई न हुई त्रास हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

गणित तो समझ नहीं आता,
गुणा-भाग में ही उलझ जाता,
मुश्किल से परचा पूरा हो पाता,
सवाल तो सवाल ही रह जाता,
तीन घण्टा यूं पास हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

अंग्रेजी कि भी अपनी कहानी,
मर जाये अंग्रेजों की नानी,
खुद चले गये छोडी परेशानी,
शिक्षा विभाग भी करे मनमानी,
आज फिर निराश हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

इतिहास भूगोल का परचा सारा,
पल्ले न पडे क्या करे बिचारा,
सवाल, गांधीजी को किसनें मारा,
जवाब, मैंने नहीं मारा,
सोचते-सोचते बुरा हाल हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

विग्यान भी मुझको नहीं सुहाता,
अच्छा होता पर्चा लीक हो जाता,
मेरा काम आसान हो जाता,
पासींग मार्क तो जुटा ही पाता,
विग्यान गले की फास हो गया,
पप्पू फिर उदास हो गया

पापा को सारा हाल सुनाया,
एक पर्चा पूरा न हो पाया,
पापा का भी जी घबराया,
पापानें मास्टर को पटाया,
"रत्ती" चुटकी में अपनें आप हो गया,
धक्के से पप्पू पास हो गया

Tuesday, May 20, 2008

आज का भगवान

आज का भगवान
मैं हूँ मैं जो कहता हूँ
वह करके रहता हूँ¡
अगर विश्वास न हो तो,
कुछ बातें कहता हूँ
मुझे पाने के लिये लोग
बड़े से बड़ा जुर्म किये जाते हैं

सच्चाई से कुछ नहीं होता,
मेरे लिये झूठ पर झूठ बोले जाते हैं
सिर्फ मेरे ही बल पर सारी उलझनों को हल कर
कुछ तो पिस्ते बादाम खाते हैं
अब तो बुरा हाल है भईया
दो वक़्त की रोटी तो दूर
दाने-दाने को तरस जाते हैं
सरकारी हो या ग़ैर सरकारी

सभी वर्गों के कर्मचारी मुझे उपयोग में लाते हैं
जिसके कई नाम हैं
जैसे दान, चायपानी, मस्का, रिश्वत,
भाई ख़ाली रोटी से तो पेट नहीं भरता पर,
मेरे लिये ज़रुरत पड़े तो
लोगों का ख़ून तक पी जाते हैं
मैं जिसके साथ रहूँ

जिंदगी उसकी निराली है
हर सुबह को वह होली खेले
हर शाम उसकी दिवाली है
मैं जिससे रुठ जाऊं
चाल शराबी वाली है

खाने को दिल करे कभी
कुछ पर जेब पड़ी ख़ाली है
इसीलिये कहते हैं यारो

मैं मैं हूँ मैं जो कहता हूँ
वो करके रहता हूँ दुनिया को बस में करता हूँ
अगर कोई शक हो दिल में तो अंत में
ये कहता हूँ आज का भगवान है बड़ा महान
पहले तो वो उपरवाला रब्ब था
लेकिन अब मैं हूँ श्रीमान
नगद है भगवान भइया .....
नगद है भगवान भइया .....

काला मन

"काला मन"
मेरे मन के भीतर दो आंखों ने
झांकना शुरू किया
तो वो आश्चर्य चकित रह गयी

मन मन खुला का खुला रह गया
कितना गोरा है तन
उससे कई गुना ज्यादा काला है मन
कई जन्मों की धुलाई के बाद भी
असंभव सा लगता है कि वो सफेद होगा
नवीन लगेगा
मन के साथीयों से हुआ
आमना-सामना
इस मन के गुण और खूबियाँ बतलाऊं
सावधान हंसना मत ऐसा ही होता है मन

सुनो झूठ, फ़रेब, चोरी, मक्कारी, होशियारी,
चार सौ बीस, धोखेबाज
ये सब एक ही घर में डेरा डाले पडे़ रहते हैं
और मन इनका गुलाम
ये कुछ डरावनें लोग देखे
मेरे मन में
उन आंखों ने भयभीत हो मुख से निकल गया

हे! भगवान ऐसा होता है मन
हजार ऐबो से युक्त
सचमुच काला है
सचमुच काला है .....

Monday, May 19, 2008

प्रेरणा

प्रेरणा तुम न होती तो, मेरा अस्तित्व न होता
मैं किसी आम आदमी की तरह रह रहा होता
मेरे दिल में जो सपन्दन होती है,
बुद्धि का विकास होता है,
नये-नये विचार उत्पन्न होते हैं,
मुझे ऊर्जा मिलती है,
तो एक नयी रचना जन्म लेती है.
लोग शायद तुम से परिचित न हों
लेकिन तुम मेरी कल्पना को उत्तेजित कर,
मुझे लिखनें पर मजबुर कर देती हो
राह चलते-चलते कुछ शब्द अगर,
मेरी बुद्धि में घर कर गये
तो मैं विचलित हो जाता हूं,
जब तक पुरा न कर लूं उसे।

प्रेरणा तुम मेरे लिये एक बीज हो,
जिसे मैं बोता हूँ यादों की भूमि में
और मेहनत से कलम का हल चलाता हूँ
शब्दों का खाद-पानी डाल कर,

एक नयी रचना, नन्हें पौधे का, सपना सजाता हूँ
लो, देखो, प्रेरणा अब बड़ी हो गयी है,

विशाल वृक्ष का रुप धर लिया है
मई, सुंदर, शब्दों के फूलों को,
मैंने चुन लिया
रचना भी एक मीठा फल है,
जिसे देख मेरे मुंह में पानी भर आया
"रत्ती" मैं ये मीठा आम, मेरी रचना,
जो कभी प्रेरणा थी,
सबके साथ बाँट कर खाना चाहता हूँ .....