जोगी
राम की अमृत-वाणी रसीली,
कर लो पान इसका जोगी रे
वो घट-घट वासी सर्वत्र बसे,
करो ध्यान उसका जोगी रे
बन-बन घूमने से ना मिलेगा
सबके दिल में बसता जोगी रे
जगत के सारे काम हैं झूठे,
उसमें क्यों फसता जोगी रे
माया के लोभ कारन से ही,
रब से विमुखता जोगी रे
राम नाम रामबाण दवा है,
''रत्ती'' नहीं जपता जोगी रे
Thursday, April 22, 2010
Tuesday, April 20, 2010
बादल
बादल
एक निगाह झरोखे को चीरती
निहारती बड़े अदब से
दिल ही दिल में पुकारती
तिश्नगी लबों पे लिये
हलक सहलाते-सहलाते
फलक़ की तरफ देखा उसने
आफताब अपनी पूरी ताक़त के साथ
तमाज़त बरसा रहा था
ज़मीं तो तवे जैसी तप रही थी
पांव रखते ही जलने का अहसास कराती
इधर कुछ दिनों से साज़ीश की बू आने लगी है
सूरज ने बादल से दोस्ताना बढ़ाया है
दोनों ने मिल कर हमारा खून सुखाया है
सियासत की कौन सी चाल कब खेलनी है
अवाम को कैसे धोखा देना है
और फिर ऐसा मालूम होता है
बादल अब सरकारी मुलाज़िम हो गये हैं
जब चाहा आते हैं और जब चाहा चले जाते हैं
बेरोकटोक
ये बड़े हरजाई हैं
बरसते हैं तो समंदरों के सीने पर
झरनों के माथे पर,
नदिया के निचले किनारे पर
और मेहरबां हैं संगदिल पर्बतों पर
उनको नेहलाते हैं, ठन्डक देते हैं
मासूमियत भरे चेहरे लिये ताक़ते हैं
सूखी बंजर ज़मीं की ओर
ऐसा जतलाते हैं वो नावाकिफ़ हैं
यहाँ के हालात से
तुम अज़ीम बन के न फिरो
तुम्हारा ये रवैय्या नागवार है हमको
इतने बेरहम न बनो
बस एक इल्तजा है तुमसे
बरसो बरसो बरसो .....
एक निगाह झरोखे को चीरती
निहारती बड़े अदब से
दिल ही दिल में पुकारती
तिश्नगी लबों पे लिये
हलक सहलाते-सहलाते
फलक़ की तरफ देखा उसने
आफताब अपनी पूरी ताक़त के साथ
तमाज़त बरसा रहा था
ज़मीं तो तवे जैसी तप रही थी
पांव रखते ही जलने का अहसास कराती
इधर कुछ दिनों से साज़ीश की बू आने लगी है
सूरज ने बादल से दोस्ताना बढ़ाया है
दोनों ने मिल कर हमारा खून सुखाया है
सियासत की कौन सी चाल कब खेलनी है
अवाम को कैसे धोखा देना है
और फिर ऐसा मालूम होता है
बादल अब सरकारी मुलाज़िम हो गये हैं
जब चाहा आते हैं और जब चाहा चले जाते हैं
बेरोकटोक
ये बड़े हरजाई हैं
बरसते हैं तो समंदरों के सीने पर
झरनों के माथे पर,
नदिया के निचले किनारे पर
और मेहरबां हैं संगदिल पर्बतों पर
उनको नेहलाते हैं, ठन्डक देते हैं
मासूमियत भरे चेहरे लिये ताक़ते हैं
सूखी बंजर ज़मीं की ओर
ऐसा जतलाते हैं वो नावाकिफ़ हैं
यहाँ के हालात से
तुम अज़ीम बन के न फिरो
तुम्हारा ये रवैय्या नागवार है हमको
इतने बेरहम न बनो
बस एक इल्तजा है तुमसे
बरसो बरसो बरसो .....
Thursday, April 8, 2010
उतावले शब्द
उतावले शब्द
सजल नयनों की भाषा
में थी अजीब निराशा
निराशा में छुपा था नवीन सपना
अनदेखा दृश्य कुछ कहानियाँ, बातें
और मस्तक की सिलवटों के पीछे नेत्र
जिनमें बसा था एक शहर
सुनसान
उन अधरों पर थे अनगिनत उतावले शब्द
जो पड़े रहे, अटके रहे
कई दिनों, महीनों
मन बुद्धि के निर्णय की राह तकते
उचित समय की बाट जोहते
क़ैद होकर रह गए
मन की चारदिवारी में
भीतर के घमासान में
पिसते-पिसते धुल हो गए .....
सजल नयनों की भाषा
में थी अजीब निराशा
निराशा में छुपा था नवीन सपना
अनदेखा दृश्य कुछ कहानियाँ, बातें
और मस्तक की सिलवटों के पीछे नेत्र
जिनमें बसा था एक शहर
सुनसान
उन अधरों पर थे अनगिनत उतावले शब्द
जो पड़े रहे, अटके रहे
कई दिनों, महीनों
मन बुद्धि के निर्णय की राह तकते
उचित समय की बाट जोहते
क़ैद होकर रह गए
मन की चारदिवारी में
भीतर के घमासान में
पिसते-पिसते धुल हो गए .....
Wednesday, April 7, 2010
बदगुमानी
"बदगुमानी"
वो शिकार हो गया है बदगुमानी का,
वक़्त आया जैसे किसी की क़ुर्बानी का
कुछ लोगों की होती अजीब हरकतें,
उम्दा सुबूत पेश करते नादानी का
खुद गुमराह हुए हैं या किये गए हैं,
एक अनोखा सबब पाया परेशनी का
बदगुमां दमाग में रोज़न होने लगे,
बरपा बेमज़ा कहर शऊर मनमानी का
जाने कैसे "रत्ती" तौफ़ीक़ ने पाँव पसारे
नया फुतूर देखा हैरतअंगेज़ कहानी का
शब्दार्थ
बदगुमानी = गलत धारणा, गुमराह = पथभ्रष्ट
सबब = कारण, बदगुमां = संशयी, रोज़न = छेद, बरपा = उपस्थित
शऊर = तरीका, तौफ़ीक़ = हिम्मत, शक्ति, फ़ूतूर = दोष
वो शिकार हो गया है बदगुमानी का,
वक़्त आया जैसे किसी की क़ुर्बानी का
कुछ लोगों की होती अजीब हरकतें,
उम्दा सुबूत पेश करते नादानी का
खुद गुमराह हुए हैं या किये गए हैं,
एक अनोखा सबब पाया परेशनी का
बदगुमां दमाग में रोज़न होने लगे,
बरपा बेमज़ा कहर शऊर मनमानी का
जाने कैसे "रत्ती" तौफ़ीक़ ने पाँव पसारे
नया फुतूर देखा हैरतअंगेज़ कहानी का
शब्दार्थ
बदगुमानी = गलत धारणा, गुमराह = पथभ्रष्ट
सबब = कारण, बदगुमां = संशयी, रोज़न = छेद, बरपा = उपस्थित
शऊर = तरीका, तौफ़ीक़ = हिम्मत, शक्ति, फ़ूतूर = दोष
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