Thursday, September 11, 2008

गुरु ( मुर्शिद )


गुरु ( मुर्शिद )



मेरा दिल मिले दिलदार मिले,
एक चाहत है तेरा प्यार मिले
दुनियाँ के नज़ारे देखे बहोत,
बस मुझे तेरा दीदार मिले
मैं सफर में रहूँ या मकां में,
तेरी याद ज़हन में बरक़रार मिले

तेरे लिये मसरुफ रहूँ, खिदमत करूँ,
भले दुनियाँ में लानत हज़ार मिले

जो सजदा करते, इबादत करते,
उनकी होती फतह न हार मिले

तुम मेरे मुर्शिद हो, खु़दा हो,
ये फख्र मुझे सरकार मिले

तेरे क़रम, तेरे एहसान बहोत "रत्ती"
ऐसे रहमदिल परवरदीगार मिले

Monday, September 1, 2008

रिश्ते

"रिश्ते"
वो बोले तुम से मेरे सारे रिश्ते नाते हैं,

मुझे वो शोला भी शबनम नज़र आते हैं


दो तरफा ज़ुबां का चलन जान गये हम,

मैं दूरी रखना चाहता हूँ वो क़रीब आते हैं


दौलत-ओ-हुस्न खींच लाता है सबको,

वरना कौन किसी को अपना बनाते हैं


पलकों पे बिठाने का इरादा था मेरा,

वो हर बार ही हमें दगा दे जाते हैं


रिश्ते क़ायम रखनें की नसीहत देते हैं,

रिश्ते जोड़नेवाले, तोड़ने की जहमत उठाते हैं


ख़ून के रिश्ते पे यक़ीं था भरोसा था "रत्ती"

दौलत की ख़ातिर बाप-बेटे उलझ जाते हैं

लहर

लहर
मैं लहर हूँ
उठती हूँ गिरती हूँ
यही मेरा काम है
इसीसे मेरा नाम है
हर उठती तरंग मेरी पहचान है
गिरने का मज़ा, मिलने का मज़ा,
निराला है मेरा अंतरमन वो ही जानें,
गिरने और मिटनें में पीड़ा तो है,
पीड़ा में छुपा एक जीवन नया,
आना-जाना, परिवर्तन,
प्रकृति का नियम,
नियम में बंध कर ही,
कार्यों को नया क्रम मिला,
नहीं तो सब काज आधे-अधूरे रह जाये,
एक दूसरे की बाट जोहते तकते रह जाए
आस-निरास की उधेड़बुन में,
जीवन नैय्या, तट पर ही न पहुँच पाती,
लहर साँसों को नहीं गिनती,
वो निरन्तर शक्ल दिखा कर लुप्त हो जाती है,
फिर चली आती है ..... फिर लुप्त हो जाती है .....
फिर .....