बस में नहीं
चाहतों की दुनियाँ में बड़ी से बड़ी चाहत मिली,
ज़मीं के बाशिंदे के पैर फलक़ पे बस में नहीं
वो हबीब रुठा है मिन्नतों से मना लूंगा लेकिन,
गौहर-ओ-ज़र की चाहत उसे मेरे बस में नहीं
आबरु की बोली लगानें वाले आज जश्न मना रहे,
तोहमतों की बौछार से संभल जाऊँ बस में नहीं
किसी अन्जान के मानिन्द इज़्ज़त तराज़ू में तौले,
फ़रेब का झूका पलड़ा रोक लूँ मेरे बस में नहीं
मयख़ाना ही अक्सर नज़र आता है गर्दिशों में,
दो मीठे बोल सुरीले नगमें सुनूँ मेरे बस में नहीं
बिखरे दिल के टुकड़ों को ढून्ढता हूँ दिन-रात,
जो बिछडे़ “रत्ती“ उनका विसाल मेरे बस में नहीं
ग़मों के ज़लज़ले दिल में समेट लूँ बस में नहीं,
सर्द हवायें कड़कती धूप किसी के बस में नहींचाहतों की दुनियाँ में बड़ी से बड़ी चाहत मिली,
ज़मीं के बाशिंदे के पैर फलक़ पे बस में नहीं
वो हबीब रुठा है मिन्नतों से मना लूंगा लेकिन,
गौहर-ओ-ज़र की चाहत उसे मेरे बस में नहीं
आबरु की बोली लगानें वाले आज जश्न मना रहे,
तोहमतों की बौछार से संभल जाऊँ बस में नहीं
किसी अन्जान के मानिन्द इज़्ज़त तराज़ू में तौले,
फ़रेब का झूका पलड़ा रोक लूँ मेरे बस में नहीं
मयख़ाना ही अक्सर नज़र आता है गर्दिशों में,
दो मीठे बोल सुरीले नगमें सुनूँ मेरे बस में नहीं
बिखरे दिल के टुकड़ों को ढून्ढता हूँ दिन-रात,
जो बिछडे़ “रत्ती“ उनका विसाल मेरे बस में नहीं