Wednesday, June 21, 2017

तो खुदा याद आयेगा

अंतरमन

एक बार तो झांको भीतर
मैं पुकारता हूँ, झकझोरता हूँ
संकेत देता हूँ हर क्षण
तुम हो के अपनी ही करते हो
नहीं सुनते हो किसी की
मुझे अनदेखा करके
बार-बार गलत निर्णय ही लेते हो
ठीक  है, मैं कौन होता हूँ , तुम्हें समझनेवाला
तुम्हारा मेरा सम्बन्ध क्या है ?
मैं निस्वार्थ तुम्हारे हर कार्य पर दृष्टि रखनेवाला
तुम्हारा शुभचिंतक, पथप्रदर्शक
जो चाहे कर लो तुम
दंड और ठोकरों से बच नहीं सकते
भविष्य भी चिंतित है
तुम्हारी करतूतों को देखकर
कह रहा है,कैसा कठोर है, चट्टान सा
ठोकरों को आमंत्रण दे रहा है
स्वयं भी डूबेगा और परिवार भी भुगतेगा
"दुनियां में जितने उपाय उपलब्ध हैं,
जीवन सँवारने के, सुन्दर बनाने के
उन प्रयासों के सारे किले
स्वयं ध्वस्त कर दिये "
पापों और अपराधों की फेहरिस्त
बता रही है
जो दंड होगा, बड़ा भयानक, कड़ा और दुखदायी होगा
पीड़ा हर क्षण थप्पड़ मारेगी
एक जनम तो क्या, कई जन्मों तक
पीड़ित बनकर ही जीना होगा
ये मैं नहीं कह रहा
जाओ, देखो टटोलो, अपने धर्मग्रंथों को
जो सदियों से चीख-चीख कर कह रहे हैं
सरल बनो, काँटों की डगर न चुनो
चक्षुओं से पैरों से रक्त रिसेगा 
अब के मैंने सोचा है
चुप रहूं, कुछ न कहूं तुमसे
मैं ज़िंदा लाश, कभी आकाश और धरती को देखता हूँ
यही कारण  ये जीवन नरकीय हो गया है
"रत्ती" तुमने मुझसे शत्रुता निभाई है
अंतर्मन को अँधेरी कोठरी में धकेल कर दुत्कारा है  ------
सुरिन्दर रत्ती

Monday, June 19, 2017

झूठे ख़ाब

झूठे ख़ाब 


गुनगुनाने लगे, मुस्कूराने लगे
वो ख़ाब थे झूठे, समझाने लगे
आओ गले लग जाओ, सब छोड़ के,
मेरी रूह-ओ -जिस्म को, फुसलाने लगे

बहोत सी दूरियाँ, मुक़द्दर के खेल,
सुब्हो-शाम मुझे, डराने लगे

अजीब हरकतों का, मुझसे था वास्ता,
डगर-डगर क़दम, डगमगाने लगे

प्यार की ही थी, ताउम्र जुस्तजू ,
अपने-पराये हरपल, बहकाने लगे

हम ही थे उनकी, नज़रों के सामने,
मगर दिल के राबते, बेगाने लगे

देख के भी अनदेखा, फितरत थी उनकी,
दिल-ओ-जां  को "रत्ती", वो  जलाने लगे