साये
पहले साये चलते थे अब बोलने लगे,
मेरी हंसी दुनियाँ में ज़हर घोलने लगे
जब रात गहरायी आंखें बंद होने लगी,
तो सपनों में डरावने मंज़र दौड़ने लगे
जैसे कोई तहक़ीकात कर रहा हो मेरी,
सारे गुनाहों की फेहरिस्त खोलने लगे
ज़िन्दगी की शाम दूर से तमाशा देखे,
भूखे सवेरे अब मेरी सांसें मरोड़ने लगे
मैं बहोत मुतासिर था अपने अज़ीज़ों से,
मुझे देखते ही वो अपना मुँह मोड़ने लगे
“रत्ती“ मयख़ाने के सिवा कहाँ जाते हम,
जाम पी पी के सारे गिलास तोड़ने लगे