Sunday, September 18, 2011

इल्म (Adult Education Programme)












इल्म
(Adult Education Programme)

कुछ दरीचे बंद थे, कैसे आये महकती सबा,
उम्र के इस दौर का, जोश बहोत अच्छा लगा

बढ गए उनके क़दम, कुछ सीखने की चाह में,
इल्म होगा कितना हासिल, वक़्त देगा इसका पता

कारवाँ गुज़र गया, ज़ोफ जिस्मो-जान में,
दमे आखिर कलम से, हो रही अब इब्तिदा

बेशुमार कलियाँ चमन में, तड़प रहीं, बेनूर भी,
ख़्वार होती जवानियाँ, पूछती सबसे जा-ब-जा

चंद सिक्कों की खनक में, हर इल्म कहीं खो गया,
अलिफ, बे ग़रीब न जाने, जीना उनका इक सज़ा

हों मुसलसल कोशिशें, गर तरक्क़ी के वास्ते,
क्या मजाल हुनर की, सर झुकाए रहे पास खड़ा

मोहताज, नाचार बशर, सोती रही हुकूमतें,
"रत्ती" विरासत में मिला, तंगहाल टूटा मदरसा

Tuesday, September 13, 2011

गीत - १

गीत - १  


समंदर यादों का भरा हुआ

हाय क्या हुआ ये क्या हुआ

क्या कुछ खो गया है

इक रोग हो गया है

खुबसूरत चेहरा डरा हुआ



जवां खाबों ने ली अंगडाइयां

लम्बी हैं बैरी तन्हाइयां

वक़्त भी है ठहरा हुआ

हाय क्या हुआ ये क्या हुआ .....



दर्द केह रहा ग़मों से अब

जिस्मो जां से जाओगे कब

इंतज़ार में ज़ख्म हरा हुआ

हाय क्या हुआ ये क्या हुआ .....



जाम की तरफ नज़र जाये

पी बहोत पर नशा न आये

मय है के पानी इसमें भरा हुआ

हाय क्या हुआ ये क्या हुआ .....



वस्ले यार की है बेक़रारी

लगी है दिल में चिंगारी

बुझाये ना बुझे बुरा हुआ

हाय क्या हुआ ये क्या हुआ .....

Friday, September 2, 2011

ग़ज़ल - ३

ग़ज़ल - ३

कीमत बहुत है एक सही कहे बयान की,
ये भी ज़रूर न फिसलन हो ज़बान की 

अम्बर से आये हैं सब महरूम टूटे दिल,
बेचैन, बिखरे, नाखुश, आहट तुफान  की 
 
सीरत अजीब शक्ल अजीबो ग़रीब है,
कैसे ज़हीन बात करे खानदान की 
 
शम्सो-क़मर नहीं चलते साथ ना कभी,
दीदार चाहे बात न कर इस जहान की
 
सर पर कफ़न लिये बढ़ता है जवान वो,
परवाह है नहीं दुश्मन की न जान की
 
तस्कीन दे रहे सब "रत्ती" ज़माने में,
बचे कुछ तो सूखे शजर दौलत किसान की

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