Thursday, April 12, 2012

"ख़ाब" (सपने)

"ख़ाब" (सपने)

ख़ाब हम सोते हुए भी देखते हैं
भूल जाते हैं
और जागते हुए भी
या यूँ कहें ख़ाब देखना इंसान की फितरत है
यादें जमा तज़ुर्बा जमा ख़ाब
ये फार्मूला - मंज़िल के क़रीब ले जायेगा
ख़ाब हर शै देने की हिमाक़त रखते हैं
फक़त बुलंद हौसले, इरादे और बढते क़दमों की ज़रूरत है
ऐसे शख्स हयात की ठोकरों को झेलते
तूफ़ान जैसे मसायल से लड़ते
मंजिले मक़सूद को अपने क़रीब
अपनी आगोश में ले लेते हैं
वफ़ा से भरा नज़रिया
तंदरुस्त सोच का होना लाज़ीमी है
हरेक के वास्ते
फ़रेबी ने जाल बुना, सपना संजोया अमीरी का
और लूट ले गया सरमाया मासूमों का
ये ख़ाब तशदूद वाला, डरावना है
हथकड़ी, बेड़ियाँ और सलाखों से
तारुफ़ ज़रूर करवाएगा
तहज़ीब पसंद, अमन पसंद ऐसे खाबों से
कोसों दूर रहना चाहते हैं
सपने क्या कोई मर्ज़ हैं,
रवायत हैं, फितरत हैं, सोच हैं, फुतूर हैं
क्या  हैं ?
मैं तो कहूँ अच्छे ख़ाब आनेवाले कल में
तोहफें लेकर खड़े हैं
आपको अच्छे लगते हैं तो जनाब
सपनों के नगीने, हीरे-मोती चुने
जो आपको ताउम्र बेशुमार दौलत और सुकून देंगे .....

Monday, April 2, 2012

ग़ज़ल - ७

ग़ज़ल - ७

ज़माने भर के हसीं चेहरे ही ज़हन में आये
नये-नये ख़ाब और रगबत ज़रा सी हरकत चुभन में आये

शऊर सीखा है इश्क़ का आपसे हशर भी कमाल होगा
वफूर-ए-इश्क़ साँस में रोम-रोम में तन-बदन में आये

जवां हसीं ज़िन्दगी की इब्तिदा तो हुई मगर फिर
दहर के फितने खिले दिलों पे सितम को ढाने चमन में आये

सुलग गये दिल न जाने किस बात पर हुआ रंज आज उनको
जहां पे बिखरे महक ख़ुशी झूमें आप उस अंजुमन में आये

नवर्द-ए-इश्क़ जीत के तुमको साफ राहें नहीं मिलेंगी
सुकून की रंग-ओ-बू फैले नहिफ उल्फत शेवन में आये

गिरा न देना मुझे नज़र से बहोत छानी है खाक़ मौला
दमे-आख़िर बस लबों पे हो नाम हरपल तेरा ज़हन में आये

रवायतों का किया धरा है बशर न सर को उठा सकेगा
गुमान मग़रिब गुमान मशरिक़ ये ज़ुल्म "रत्ती" अमन में आये

१२१२२, १२१२२, १२१२२, १२१२२
शब्दार्थ
रगबत - रूचि, शऊर - योग्यता, तरीका, वफूर - ज़्यादा,  इब्तिदा - शुरुवात
दहर - दुनियां, फितने - उपद्रव, कठिनाइयाँ, अंजुमन - महफ़िल, सभा
नवर्द-ए-इश्क़ - प्रेम की जंग,  रंग-ओ-बू - रंग और सुगंध, नहिफ - कोमल, मृदु,
शेवन - आचरण, व्यवहार, रवायत - रिवाज़, बशर - आदमी,  मग़रिब  - पश्चिम, मशरिक़ - पूरब