Monday, December 24, 2012

ग़ज़ल - 9
जो देना है मुझे सजा कर दे I
अपने हाथों से पास सब धर दे    I 1 I
 
वो जफ़ा ही करे वफ़ा करके I
प्यार तौले बखील कमतर दे    I 2 I
 
बारहा टूटता है दिल क्यूँ कर I
रोज़ कोई न कोई ठोकर दे    I 3 I
 
हूँ गुनहगार मैं के तुम जानाँ I
प्यार के बदले हाय खंजर दे    I 4 I
 
आँख में धूल झोंकना आसां I
सिलसिलेवार दुख सितमगर दे    I 5 I
 
ख़ुदकुशी न कर ले तेरे ग़म में I
आ अभी मिल गले ख़ुशी भर दे   I 6 I
 
महफिलें सज गयी ग़ज़ल की फिर I
दाद पे दाद सब सुखनवर दे    I 7 I
 
मुनफरिद राह प्यार की "रत्ती" I
जंग-ए-इश्क़ दर्द न भर दे    I 8 I

Thursday, November 29, 2012

गीत

गीत     2

 
खुशियों के सुनहरे आलम में,
ग़मों का दर्द सुनाई दे
रातों के फैले अंधेरों में,
जुगनू कितनी रौशनाई दे
खुशियों के सुनहरे आलम में.....
 
 
ढलती हुई जवानी से,
पूछो कैसे दिन-रात कटे
हरदम नश्तर चुभते ही रहे,
और लहू बिखरा दिखाई दे
खुशियों के सुनहरे आलम में .....
 
इक अना की खातिर मर-मिटने वाले,
सारे इंसान हैं हम
अंजाम हसीं होगा कैसे,
दावत अश्कों की रुलाई दे
खुशियों के सुनहरे आलम में .....
 
मीठे-मीठे वो दो जुमले,
किसी तरह ज़हर से कम तो नहीं
फीकी चेहरे की रंगत में,
लाखों दरारें दिखाई दे
खुशियों के सुनहरे आलम में .....
 

Saturday, September 1, 2012

ग़ज़ल - ८

ग़ज़ल - ८

रंग महफ़िल में जम के जमाया करो
लुत्फ़ हर लम्हे का सब उठाया करो
 
पाक दामन नहीं साफ दिल भी नहीं
तोहमत तुम न उन पे लगाया करो
 
चीज़ मिलती है बाज़ार में हर जगह
मुफ्त पर आँख तुम ना गढ़ाया करो
 
बरहना खेल गन्दा सियासत भरा
ना खेलो तुम कभी ना सिखाया करो
 
वो शजर क्या खिलेंगे बहारों में अब
उन पे आरा न साहिब चलाया करो
 
मंजिलें हैं वहीँ पास आती नहीं
कुछ कदम आप नज़दीक जाया करो
 
खा चुके हैं कई ठोकरें अब तलक
मौत का डर हमें ना दिखाया करो
 
बहरे ग़म ना सुनें अब किसी बात को
कश ख़ुशी का ले उनको उड़ाया करो

ज़िन्दगी बेवफ़ा भी गुज़र जायेगी
हौसला तुम न "रत्ती" गिराया करो

Thursday, August 16, 2012

चाँद

चाँद




चौदहवीं के चाँद हो, कब तलक तरसाओगे
आसमां से ही देखोगे, ज़मीं पे कब आओगे
यह गुरुर-ए-जवानी, बहुत दूर ले जायेगी
तुम चाह के भी न, मेरे क़रीब आओगे

बादलों की ओट का, लेते हो रोज़ सहारा
लुका-छिपी के खेल से, कुछ न हासिल कर पाओगे

शर्मो-हया, शीतलता, चंचलता बची नहीं
सूरज की तरह तुम भी, शोले बरसाओगे

दिल है पास तुम्हारे या, संग लिये फिरते हो
ज़ख्मों से तन भरा हो, तो भी तीर चलाओगे

ये बेरुखी की बातें, बरसों बाद मुलाकातें
मुंह फेरना ठीक नहीं, रु-ब-रु कब आओगे

कोई गरजता है कभी, तो कोई बरसता है
नागों सा इक दिन "रत्ती" रत्ती निगल जाओगे

Thursday, July 12, 2012


दोस्तोंइधर कुछ दिनों से मसरूफियत के चलतेमैं कुछ लिख नहीं पाया ... आज एक छोटा सा गीत लेकर हाज़िर हूँ कुबूल फरमाएं - सुरिन्दर रत्ती - मुंबई



"दरार" - गीत

प्यार में दरार क्यूँ, बिखरे हैं सारे रास्ते

तू ही बता जाने जिगर, क्या करूँ तेरे वास्ते

प्यार में दरार क्यूँ .....

रूठ के हमदम क्या, होगा अब हासिल तुझे

दर्द के क्या मायने, असर नहीं किसी बात से

प्यार में दरार क्यूँ .....

मचलती लहरों को देखो, जलते बुझते दीये

वह शम्मां क्या जियेगी, जो डरती है आग से

प्यार में दरार क्यूँ .....

तिश्नगी बढती रही, किसने पुकारा है उसे

सांसों की डोर बोली, टूटने का डर रात से

प्यार में दरार क्यूँ .....

Thursday, April 12, 2012

"ख़ाब" (सपने)

"ख़ाब" (सपने)

ख़ाब हम सोते हुए भी देखते हैं
भूल जाते हैं
और जागते हुए भी
या यूँ कहें ख़ाब देखना इंसान की फितरत है
यादें जमा तज़ुर्बा जमा ख़ाब
ये फार्मूला - मंज़िल के क़रीब ले जायेगा
ख़ाब हर शै देने की हिमाक़त रखते हैं
फक़त बुलंद हौसले, इरादे और बढते क़दमों की ज़रूरत है
ऐसे शख्स हयात की ठोकरों को झेलते
तूफ़ान जैसे मसायल से लड़ते
मंजिले मक़सूद को अपने क़रीब
अपनी आगोश में ले लेते हैं
वफ़ा से भरा नज़रिया
तंदरुस्त सोच का होना लाज़ीमी है
हरेक के वास्ते
फ़रेबी ने जाल बुना, सपना संजोया अमीरी का
और लूट ले गया सरमाया मासूमों का
ये ख़ाब तशदूद वाला, डरावना है
हथकड़ी, बेड़ियाँ और सलाखों से
तारुफ़ ज़रूर करवाएगा
तहज़ीब पसंद, अमन पसंद ऐसे खाबों से
कोसों दूर रहना चाहते हैं
सपने क्या कोई मर्ज़ हैं,
रवायत हैं, फितरत हैं, सोच हैं, फुतूर हैं
क्या  हैं ?
मैं तो कहूँ अच्छे ख़ाब आनेवाले कल में
तोहफें लेकर खड़े हैं
आपको अच्छे लगते हैं तो जनाब
सपनों के नगीने, हीरे-मोती चुने
जो आपको ताउम्र बेशुमार दौलत और सुकून देंगे .....

Monday, April 2, 2012

ग़ज़ल - ७

ग़ज़ल - ७

ज़माने भर के हसीं चेहरे ही ज़हन में आये
नये-नये ख़ाब और रगबत ज़रा सी हरकत चुभन में आये

शऊर सीखा है इश्क़ का आपसे हशर भी कमाल होगा
वफूर-ए-इश्क़ साँस में रोम-रोम में तन-बदन में आये

जवां हसीं ज़िन्दगी की इब्तिदा तो हुई मगर फिर
दहर के फितने खिले दिलों पे सितम को ढाने चमन में आये

सुलग गये दिल न जाने किस बात पर हुआ रंज आज उनको
जहां पे बिखरे महक ख़ुशी झूमें आप उस अंजुमन में आये

नवर्द-ए-इश्क़ जीत के तुमको साफ राहें नहीं मिलेंगी
सुकून की रंग-ओ-बू फैले नहिफ उल्फत शेवन में आये

गिरा न देना मुझे नज़र से बहोत छानी है खाक़ मौला
दमे-आख़िर बस लबों पे हो नाम हरपल तेरा ज़हन में आये

रवायतों का किया धरा है बशर न सर को उठा सकेगा
गुमान मग़रिब गुमान मशरिक़ ये ज़ुल्म "रत्ती" अमन में आये

१२१२२, १२१२२, १२१२२, १२१२२
शब्दार्थ
रगबत - रूचि, शऊर - योग्यता, तरीका, वफूर - ज़्यादा,  इब्तिदा - शुरुवात
दहर - दुनियां, फितने - उपद्रव, कठिनाइयाँ, अंजुमन - महफ़िल, सभा
नवर्द-ए-इश्क़ - प्रेम की जंग,  रंग-ओ-बू - रंग और सुगंध, नहिफ - कोमल, मृदु,
शेवन - आचरण, व्यवहार, रवायत - रिवाज़, बशर - आदमी,  मग़रिब  - पश्चिम, मशरिक़ - पूरब
      

Wednesday, March 28, 2012

ग़ज़ल - ६

ग़ज़ल - ६

सुब्ह भी खुल के कभी हसती नहीं तो क्या हुआ I
रूठ जाये शाम ये बोलती नहीं तो क्या हुआ II १ II

गाहे-गाहे वो मेरी दहलीज़ पर आने लगे I
शोख नज़रें इस तरफ तकती नहीं तो क्या हुआ II २ II

क़ुर्ब है अहसास है इस दिल में बसते आप हैं I
काकुलों में उंगली फेरी नहीं तो क्या हुआ II ३ II

जोश में तो होश भी जाता रहा सरकार का I
इश्क़ में मन की कभी चलती नहीं तो क्या हुआ II ४ II

बिखरे हैं अल्फाज़ शायर यूं ही हम तो बन गये I
सीख "रत्ती" शायरी आती नहीं तो क्या हुआ II ५ II
२१२२, २१२२, २१२२, २१२

Wednesday, March 7, 2012

"होली का हुडदंग"


प्रिय मित्रो, आप सबको होली की शुभ कामनाएं, 
होली के इस अवसर पर एक छोटा गीत पेश कर रहा हूँ - सुरिन्दर रत्ती    

"होली का हुडदंग"
 
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने
भिगोते हैं अंगिया, कोई बुरा न माने
वो होरी क्या जिसमें, न हो कहीं बरजोरी
दुबक के जो बैठे हैं, लगे उनको नहलाने
 
इक हाथ रंग का थाल, दूजे बड़ी पिचकारी
सखियों संग राधा जी, लग रही हैं प्यारी
वृन्दावन ही नहीं, धूम मची बरसाने
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....
 
सोरह सिंगार करके, मुख सबके चमके
विभोर हैं नर-नारी, रंगों को मल-मल के      
अदभुत है ये लीला, कोई माने या न माने 
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....
 
रंग-बिरंगे रंगों की, सुन्दर सुन्दर छटा
सुहानी बेला होरी की, छाई मोहनी घटा
ग्वाल-बाल झूम के, गाते मधुर गाने
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....
 
खूब खाए जा रहे, भांग की पकौड़ीयां
हलुवा, पूड़ी, रसमलाई, स्वाद भरी कचौड़ियाँ
सारे ग्रामवासी, भर पेट लगे खाने
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने.....
 
भरो रोम-रोम में, प्यार श्रद्धा युक्त रंग
उन्माद हो भक्ति का, ब्रम्हांड नायक भी हो दंग
"रत्ती" ऐसी होरी चाहूँ , मिलन के नित हों बहाने
राधा भई बावरी, श्याम भये मस्ताने..... 

Wednesday, February 8, 2012

ग़ज़ल - ५

ग़ज़ल - ५



बोले न मुंह से लिखे माही किताब में

पहली दफा लिखा ख़त है मुझे जवाब में



जगमग हुआ है दिल कितने दिन के वास्ते

महका खिला ये गुल उजड़े से सराब में



वो ऐब को हुनर कहते हैं सही नहीं

मय लुत्फ़ दे मगर खुमारी शबाब में



नाशाद दिल किसी दिन टूटे यक़ीन हैं

तदबीर ढून्ढ लो इस पल तुम अज़ाब में



हैवान, तिशन-ए-खूं सियासत पसंद जो

फिर मुल्क लूटेंगे सब इस इन्तखाब में



रहमो-करम दुआ करना भूल सा गये

तहज़ीब की झलक मिले "रत्ती" अब ख़ाब में



२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२

शब्दार्थ

शब्दार्थ


सराब = रेगिस्तान,  खुमारी = नशा,  शबाब = जवानी,

नाशाद = अप्रसन्न,  तदबीर = उपाय,  अज़ाब = परेशानी,

तिशन-ए-खूं = खून का प्यासा,  इन्तखाब = चुनाव,  तहज़ीब = संस्कार