Friday, October 22, 2010

रू-ब-रू

रू-ब-रू



ज़िन्दगी   महोबत के रू-ब-रू हो गयी,
फिर दोनों  में  इक जंग शुरू हो गयी


अहवाल  बला-ए-इश्क के  नागवार हैं,
न जाने  चर्चा  कैसे कू-ब-कू  हो गयी


वो  जब   नुमाया न  हुई  तो  बेक़रारी,
वस्ले-यार   के  लिये जुस्तजू  हो  गयी


लब-ए-इज़हार की  हरारत कम न थी,
आँखों-ही-आँखों  में  गुफ्तगू  हो  गयी


दोनों  जां हथेली पे लिये निकले “रत्ती“
मर मिटने की होड़ अब आरज़ू हो गयी


शब्दार्थ 
रू-ब-रू = आमने-सामने, अहवाल - विवरण
बला-ए-इश्क = प्रेम का दुख, नागवार = अप्रिय
कू-ब-कू = गली-गली,  नुमाया = प्रकट, वस्ले-यार = प्रियतम से मिलन
जुस्तजू - तलाश, लब-ए-इज़हार = मुंह से कहना, हरारत = उत्साह

Tuesday, October 5, 2010

वो एक है

वो एक है


उसने कहा ख़ुदा मेरा है
तुम्हारा नहीं
मैंने कहा भगवान मेरा है
तुम्हारा नहीं
राम-रहीम को बांट सको तो
बांट लो
वो पतितपावन एक है, एक है, एक है
गद्‌हों को अक्ल होती नहीं
इसमें कुसूर तुम्हारा नहीं