रूठना
ज़िन्दगी तूने तो फक़त रूठना ही सीखा,
मेरे चैन को पल-पल लूटना ही सीखा
दिल तो नाज़ुक है शीशे की तरह से,
तल्ख़ ज़ुबां का असर टूटना ही सीखा
मेरी गुस्ताखीयों को तौले वो तराज़ू में,
सवाब के पलड़े ने न झूकना ही सीखा
काली रात ने डराया नींद से जगाया,
वो तो सूरज था उसने उगना ही सीखा
वक़्त के मुलायम हाथ सख्त हुए "रत्ती"
मेरी ख्वाहिशों का गला घोटना ही सीखा
बहुत ही अछी कविता
ReplyDeletesundar nazm!!!!!!!
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