Monday, December 12, 2011

उम्मीद (आशा)


दोस्तों एक आज़ाद नज़्म पेश कर रहा हूँ उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आयेगी - सुरिन्दर रत्ती - मुंबई


उम्मीद (आशा)




उम्मीद पे दुनियां कायम

कयास लगाये, नज़रें टिकाये,

कभी चहके, कभी चिल्लाये

जुमलों को सजाये, जी को बहलाये

खुबसूरत बीमारी, सबकी तरफदारी

फिर आ धमकी बेकसी और बेक़रारी

थी तलाश नजूमी की, जो पढ़ता कसीदे

बताता लुभावने हसीं किस्से

देख रहा हूँ जिस्मो-जां के दो अलग हिस्से

जिगर तक्सीम कई टुकड़ों में,

फिर कहीं गूंजती भटकती सदा,

उसकी आहट, सुगबुगाहट, सनसनाहट

और इकलौती रूह जुम्बिश में

देखे दिन में तारे

खौफ़ से निकली चिंगारियां,

खाक़ में न मिले सदियों की यारियां

खुदा जानें क्या टूटा अंदर-बाहर

एक उम्मीद के सहारे निकले

किनारे-किनारे

बचा फक़त असर दुआओं का

दिलासा रहनुमाओं का

पीरों की सोहबत, उनका करम

यही उम्मीदों को बांधे रक्खे

अब तलक मिले थे चार सू धक्के

कोई कहता आबाद है, कोई कहे बरबाद है

मैं अन्जान हूँ

ख़ैर, उम्मीद का दामन पकड़ा है,

उसी के पहलू में रहना पसंद है.....

1 comment:

  1. Jab kabhi ummeed kaa daaman chhoot jata hai,man kee aankhon ke aage ghanghor andhera chhata hai.

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