गीत - 3
आँखों से दिखता नहीं, बाहर का उजाला
अंदर की दुनियां का, खेल है निराला
सपने भी पलते यहाँ, अरमान तड़पते हैं
आहें कराहती हैं, और दर्द भी हंसते हैं
गला निगलता नहीं, मुंह का निवाला
आँखों से दिखता नहीं, बाहर का उजाला .....
नये-नये ज़ख्म मिले, लिपटे रहे जान से
आशियाँ ये ताउम्र का, रहो इसमे शान से
ऐसे में याद आ गया, वो पर्वत का शिवाला
आँखों से दिखता नहीं, बाहर का उजाला .....
टूटे के बिखरा तन, डर के ले अंगडाईयां
रात में आ गयी, मेरे हिस्से तन्हाइयां
ये सुबह तीरगी भरी, चेहरा इसका काला
आँखों से दिखता नहीं, बाहर का उजाला .....
बहुत खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteBahut Sundar Geet.
ReplyDeleteMere blog तकिया भिगोना छोड़ दो mein apka svagat hai.