Monday, January 19, 2015

अच्छे दिन

अच्छे दिन
अच्छे दिनों के सपने सब देखते हैं
अभी कल ही नेताजी ने कुछ सपने दिखाये
विकास दर गगन को छुआ दी
उन्नती की गाड़ी खड़ी है कहीं गैराज में
उसके टायरों में से
आशा की हवा भी निकल दी
बुरे दिनों ने काला चोला पहन के
अच्छे दिनों को अगवा कर लिया है
जीवन को तहस-नहस करके दबा दिया है
अश्रुओं की नमकीन धारा बढ़ायी
महंगाई, भ्रष्टाचार बड़े ठग
निकले बड़े आततायी
एक शीशा कहीं कोने में खड़ा
दिखा रहा है चहरे की रंगत
जवानी में झुर्रियां हैं या झुर्रियों में जवानी
नशे का शिकार युवा,
बेसुध क्या जाने - अच्छे दिन
अच्छे दिन किसी मदारी के बन्दर हैं
मनचाहा नाच नचाओ
हिचकोले खाते हुए कमर मटकाओ
मदारी के पास बढ़िया चाबुक है
बन्दर की पीठ पे जब-तब जड़ता है
गले में फाँस है बेचारा
दर्द से कहराता है, दांत भींच के डरता है
संसद में सफेद पोशों की भीड़ ने
पैंसठ सालों से बेहिसाब
सारा माल-टाल खाया
दाद देनी पड़ेगी, एक भी डकार न आया
भाई मेरे,
अच्छे दिन तो नेताओं के आये
भारतवासी बाबाजी का ठुल्लू पाये
अच्छे दिन अख़बारों में,
मिडिया में देखे सुने
सच तो ये है अच्छे दिन लोगों के
ज़हन में रहते हैं, रहेंगे, सारी उमर
अपराधी बन कर
काश के अच्छे दिनों के बीज मिलते
खेती करके उपजे दानों को
सारे विश्व में बांटता .....
 

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