Thursday, February 26, 2015

गीत न. ३

गीत न. ३
लहरों के सीने पे वो कुछ लिख आया
धुंधला था संदेसा कोई समझ न पाया
आहों की गली से सांसें गुज़रती हैं
हौले-हौले कदम आगे धरती हैं
अपने घर में जैसे कोई हो पराया
इन सुर्ख नज़रों से लहू न सूखे
पल हंसी के चुराये सपने भी लूटे
जी भर के कोसा और खूब रुलाया
अब गर्दिश में तारों की बदसुलूकी
बची थी जो इक आस वो भी टूटी
"रत्ती" खौफ-ज़दा रूह को तड़पाया

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