Tuesday, April 28, 2015

परिवार

परिवार 


उन लहरों का मचलना, मिलन करें किनारों से
ये ज़िन्दगी भी पनपती, खिलती है परिवारों से
 

इन रिवाज़ों के भवंर का, कुछ तो होता है असर 
दे सदा आबाद कुनबे, ऊँचे बड़े मीनारों से 
 

नाते-रिश्तों की ज़ंजीरें, मज़बूत हैं फौलाद सी 
महक उठती प्यार की, दिल के गलियारों से 
 

वक़्त की दुश्वारियां, लेती रहेंगी इम्तेहान
खानदान महफूज़ "रत्ती", बचाये गुनहगारों से 

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