"चलते रहे"
उनकी अदाओ पे हम मरते रहे,
उनकी अदाओ पे हम मरते रहे,
रोज़ दहलीज़ पे सजदे करते रहे
एक इंतज़ार बेक़रारी बढाता रहा,
सुबह से शाम पलकें झपकते रहे
मेरे दिल में बहोत हसरतें उठी,
मेरी नींदों में सपने बन उतारते रहे
वो सबा मुसर्रत थी तेरा लम्स पा गयी,
हम मासूम चेहरा लिए तरसते रहे
जवानी पे गुमान होना लाजिमी था,
वो ठुमके लगा-लगा के चलते रहे
कुछ लम्हे ऐसे भी यादगार बने,
हम उनको वो हमको छलते रहे
आगाज़-ऐ- इश्क में अंजाम मालूम न था,
"रत्ती" बेफिक्र मंजिल पे बढ़ते रहे
शब्दार्थ
सबा = हवा, मुसर्रत = खुश, लम्स = स्पर्श,
आगाज़-ऐ- इश्क = प्यार की शुरुवात
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