Sunday, September 6, 2009

हयात

हयात
थोड़ा-थोड़ा जीता हूँ ज़रा-ज़रा मरता हूँ,
ग़मों की आग में सुलगता हूँ जलता हूँ

ख़ुश्क अरमां हैं दम-खम भी नहीं बचा,
बेसाख्ता मिज़ाज न बिगड़े संभलता हूँ

हयात में तंदखू-ओ-बरहम भी मिले,
उलझ न जाऊँ किसी से मैं डरता हूँ

ख़ुद-परस्ती का शोर-गुल कानों में पड़ा,
कशमकश में बिना वजह उलझता हूँ

कहाँ तलक परेशानियां कोई सहन करे,
इसीलिये हर क़दम फूँक के धरता हूँ

तमाम शब एक तदबीर की तलाश रही,
बस जाहिलों के मानिन्द हाथ मलता हूँ

कुछ पल उपरवाले को याद करूँ लेकिन,
एक लम्हा भी ख़ुदा की इबादत न करता हूँ

मैं वफ़ा के कसीदे किसको सुनाऊँ "रत्ती"
दुनियाँ अपनी राह मैं अपनी राह चलता हूँ

शब्दार्थ

हयात - जीवन, बेसाख्ता - अचानक,
तंदखू - तेज़, बरहम - अप्रसन्न



1 comment:

  1. अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
    मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी "में पिरो दिया है।
    आप का स्वागत है...

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