Monday, June 28, 2010

सियासतदाँ (राजनीतिज्ञ)

मित्रो एक रचना पेश कर रहा हूँ , इसमें  एक राजनीतिज्ञ क्या सोच रहा है
अपने देश और समाज के बारे में और उसका अपना स्वार्थ कैसे हल हो इसकी उसको चिंता है .....

सियासतदाँ (राजनीतिज्ञ) 

एक आसां नया हुनर सीखना चाहता हूँ,
सारे जग को पल में ख़रीदना चाहता हूँ


ये   सियासत क्या है एक खेल के सिवा,
जो  दांव खेला  है  वो जीतना  चाहता हूँ


ना जुर्म कबूल है न  क़ानून  पर चलूँगा,
क़ानून   को  पैरों   तले  रौंदना  चाहता हूँ


फिक्र क्या है, दर्द क्या है अपनी बला से,
अपनी  ज़िंदगी ठाठ   से जीना चाहता हूँ


कोई फरियादी,  मज़लूम  भीड़  पसंद नहीं,
पाँच साल में एक बार मिलना चाहता हूँ


झूठ,   फरेब,   दिलासे   ये  हथियार हमारे,
इनके शिकंजे में सबको भीचना चाहता हूँ


दौलत,  सत्ता,  एशो - आराम  बहोत  प्यारे, 
''रत्ती''  इनको   मैं  नहीं  खोना  चाहता हूँ

7 comments:

  1. Oh..wah! Kya gazab bayaan hai yah! Aur kya ho sakta hai,ek siyasatdaan?

    ReplyDelete
  2. pahli baar apka blog padha...sach me jo aapne likha ek dam sahi likha...yahi to soch he aaj ke neta ki.

    agar aap agya de to aapki koi post me charchamanch.blogspot.com par laga sakti hu?

    aapke jawab ka intzar rahega
    Anamika7577@gmail.com par.

    shukriya.

    ReplyDelete
  3. Surinder ji,
    Bahut khoobsurati se aap ne beyan kee hai ek neta kee soch.
    Theek kha hai aap ne , ese hee hai hmare neta...
    Har khela dav jeetna chahte hai aur sare jag ko khareedna chahte hai....chahte hai ke dunia bas MUTHEE MEIN HO.

    ReplyDelete
  4. bahut hi badhiya lagi aapki kavita.

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छी लगी आप की रचना ...
    Great Satire on Politicians !

    ReplyDelete