मौज-दर-मौज
इस वक्त की तल्खीयों का
बोझ सबके शानों पर है
ऐसे लम्हात में इम्तहाँ से
रोज रू-ब-रू होना पडता है
दरीचे दिल के जो, खोलोगे तो पाओगे
छोटे-छोटे रोज़न नहीं इसमें
बड़े-बड़े दर हैं
यहाँ से तो दर्दों के काफ़िले गुज़र सकते हैं
इस मंज़र की पैकर
लोगों के ज़हन में ऐसी उतरी है
बाक़ी बची ज़िंदगी में ख़ौफ के साये
हमारे पीछे दौड़ेंगे
जैसे गली के कुत्ते
अजनबीयों पर टूट पड़ते हैं
डरा-डरा सहमा हुआ आदमी
अपने जिस्मो-जां को
किसी तरह संभालता है
ये हर रोज़ की हिकारत
ख़ुद-ब-ख़ुद पेश आती रहती है
मौज-दर-मौज सबके सामने .....
....बेहतरीन!!!
ReplyDeletebahut badiy prastuti
ReplyDeletehttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
बढिया रचना, बधाई।
ReplyDeletesundar atisundar
ReplyDeleteबडिया प्रस्तुति बधाई
ReplyDeleteसुन्दर रचना है बधाई\
ReplyDeleteसचमुच वहाँ तो दर्दों के काफिले गुजर सकते हैं ...और खौफ के साए आदमी के पीछे उसी तरह दौड़ रहे हैं , इनसे बचने के लिए आदमी जितनी तेज दौड़ता है ये भी उतनी तेज आदमी के पीछे दौड़ते हैं ।
ReplyDeletebahut badiya
ReplyDeletevery good.
ReplyDeletebahut khoob! dard saaf jhalaktaa hai apki rachnaa se. dil ki baat dil tak gayi.
ReplyDelete--Gaurav
Good work !!
ReplyDeleteaisi hi rachanye publish karte rahiye...
ek bahut acchi prastuti hai mahoday ki |
ReplyDeleteलाजबाब है !
ReplyDeleteWah bohot khub dua hai ke aap aise hi behtarin rachnae likhe
ReplyDeleteNice Blog thanks for sharing
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख लिखा है
ReplyDeletebahut acha sir...
ReplyDeleteBahut sunder rachna rachi hai.
ReplyDeleteKhoob Surinder sahab... bahut khoob !! :)
ReplyDeleteaaj hume kagaj pe aaina nazar aaya hazur ke shabdo me
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