Tuesday, October 5, 2010

वो एक है

वो एक है


उसने कहा ख़ुदा मेरा है
तुम्हारा नहीं
मैंने कहा भगवान मेरा है
तुम्हारा नहीं
राम-रहीम को बांट सको तो
बांट लो
वो पतितपावन एक है, एक है, एक है
गद्‌हों को अक्ल होती नहीं
इसमें कुसूर तुम्हारा नहीं

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव .....

    रब को ढूँढने
    पहले तो
    मन्दिर-मस्जिद जाते हैं ....
    जब थोड़ा अहिसास हुआ
    रब का ...
    कि भई हाँ ...
    रब तो है...
    उसके मिलने से पहले ही
    उसको बाँटने बैठ जाते हैं...
    तभी तो हम
    मानव जाति कहलाते हैं

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  2. सुरिंदर रत्ती जी
    नमस्कार !
    राम रहीम को बांट सको तो बांट लो …
    वो पतितपावन
    एक है !
    एक है !!
    एक है !!!

    बहुत अच्छे विचार कविता में ढले हैं , बधाई !

    आपकी तरह ही हर नेक इंसान सोचता है …
    मैं कहता हूं -
    चाहे अल्लाहू कहो , चाहे जय श्री राम !
    प्यार फैलना चाहिए , जब लें रब का नाम !!

    सुन हिंदू ! सुन मुसलमां ! प्यार चलेगा साथ !
    रब की ख़ातिर … छोड़िए , बैर अहं छल घात !!


    आपके ब्लॉग पर लगी अन्य रचनाएं भी बहुत पसंद आईं

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. गागर में सागर ....मेरे ब्लॉग पर आने के लिए अतिशय अभिवादन स्वीकार करे ..

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