उसने कहा ख़ुदा मेरा है
तुम्हारा नहीं
मैंने कहा भगवान मेरा है
तुम्हारा नहीं
राम-रहीम को बांट सको तो
बांट लो
वो पतितपावन एक है, एक है, एक है
गद्हों को अक्ल होती नहीं
इसमें कुसूर तुम्हारा नहीं
रब को ढूँढने पहले तो मन्दिर-मस्जिद जाते हैं .... जब थोड़ा अहिसास हुआ रब का ... कि भई हाँ ... रब तो है... उसके मिलने से पहले ही उसको बाँटने बैठ जाते हैं... तभी तो हम मानव जाति कहलाते हैं
बहुत सुन्दर भाव .....
ReplyDeleteरब को ढूँढने
पहले तो
मन्दिर-मस्जिद जाते हैं ....
जब थोड़ा अहिसास हुआ
रब का ...
कि भई हाँ ...
रब तो है...
उसके मिलने से पहले ही
उसको बाँटने बैठ जाते हैं...
तभी तो हम
मानव जाति कहलाते हैं
सुरिंदर रत्ती जी
ReplyDeleteनमस्कार !
राम रहीम को बांट सको तो बांट लो …
वो पतितपावन
एक है !
एक है !!
एक है !!!
बहुत अच्छे विचार कविता में ढले हैं , बधाई !
आपकी तरह ही हर नेक इंसान सोचता है …
मैं कहता हूं -
चाहे अल्लाहू कहो , चाहे जय श्री राम !
प्यार फैलना चाहिए , जब लें रब का नाम !!
सुन हिंदू ! सुन मुसलमां ! प्यार चलेगा साथ !
रब की ख़ातिर … छोड़िए , बैर अहं छल घात !!
आपके ब्लॉग पर लगी अन्य रचनाएं भी बहुत पसंद आईं
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूब!!
ReplyDeleteगागर में सागर ....मेरे ब्लॉग पर आने के लिए अतिशय अभिवादन स्वीकार करे ..
ReplyDeletekya bat hai
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