रू-ब-रू
ज़िन्दगी महोबत के रू-ब-रू हो गयी,
फिर दोनों में इक जंग शुरू हो गयी
अहवाल बला-ए-इश्क के नागवार हैं,
न जाने चर्चा कैसे कू-ब-कू हो गयी
वो जब नुमाया न हुई तो बेक़रारी,
वस्ले-यार के लिये जुस्तजू हो गयी
लब-ए-इज़हार की हरारत कम न थी,
आँखों-ही-आँखों में गुफ्तगू हो गयी
दोनों जां हथेली पे लिये निकले “रत्ती“
मर मिटने की होड़ अब आरज़ू हो गयी
शब्दार्थ
रू-ब-रू = आमने-सामने, अहवाल - विवरण
बला-ए-इश्क = प्रेम का दुख, नागवार = अप्रिय
कू-ब-कू = गली-गली, नुमाया = प्रकट, वस्ले-यार = प्रियतम से मिलन
जुस्तजू - तलाश, लब-ए-इज़हार = मुंह से कहना, हरारत = उत्साह
जिन्दगी और मोहबत की जंग ....
ReplyDeleteऐसे कैसे चलेगा ??
बहुत ही सुन्दर
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