मन
इक पल यहाँ दूजे पल वहां भागता है ये मन,
इसकी गति को पकड़ने में लग जाते कई जनम
कोशिशें लाखों करनी पड़ती हैं हम सबको,
मानव हार चुका है हो रहा हमारा पतन
हम ही को इसके गले में डालना होगा फंदा,
जिद्द करो बंधो इसे या खाओ कोई तुम क़सम
गुलामी करती है रोज़ सारी दुनियाँ इसकी,
कहने को ये दोस्त, हक़ीक़त है ये हमारा दुश्मन
मदारी ने बन्दर को काबू में रखा रस्सी से,
"रत्ती" तुम भी करो ऐसा पक्का मज़बूत जतन
मन पर विजय प्राप्त करना ही मानव का असल पुरुषार्थ है...!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
बिल्कुल सही लिखा है आपने....
ReplyDeleteनहीं आसान
बाँधकर रखना
अपना मन !
हरदीप