"दीपावली"
आओ सखियों सब मिल के रंगोली बनाओ री,
अयोध्या नगरी को दुल्हन की तरह सजाओ री
रामचन्द्र के आगमन पर कोई त्रुटी न रहे,
सुगन्धित पुष्पों की माला उनको पहनाओ री
हर गली को रंग-बिरंगे फूलों से सजाना,
रामचंद्र जब चले यहाँ से पुष्प उन पर बरसाओ री
मिष्ठान, पकवान हर तरह के ध्यान से बनाना,
छप्पन भोग, स्वादिष्ट भोजन का भोग लगाओ री
तन-मन-धन से पूजा, अर्चना का ही हो लक्ष्य,
भजन, मंगल आरती, प्रेम सहित गाओ री
राम प्रसन्न तो सब प्रसन्न, तैतीस करोड़ देवी-देव,
रामपद पूजा में मन को निरंतर लगाओ री
लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती राम के गुणगान से,
चिंतन के दीप अंतर्मन में सदा जलाओ री
जय- जयकार करो उत्साह से, बहुत प्यार से,
ह्रदय से पुकारो राम जी को और रिझाओ री
दीप जलाओ भक्ति के, आस्था और श्रद्धा भरे,
इस नियम को पक्का कर जीवन सफल बनाओ री
लोकगीतों की पृष्ठभूमि तथा कथ्य समय से गीत मधुर तथा रुचिकर बन गया है. बधाई.
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