Thursday, January 27, 2011

भरोसा

भरोसा

प्यार कितना है भरोसा करें किसी पर कैसे हम,
कौन जाने राज़ गहरे हर नफ़स मुश्किल में है

रात की ये कालिमा डसे फिर सहर कटे हमें,
आदमी जाये किधर खौफ़ हर मंज़िल में है

आदमीयत खो चुके हैं बारहा दिन-रात हम,
मुज़्तरिब यह रूह भी काँटों घिरी हाइल में है

क्या मदावा प्यार का  हौसला टूटा हुआ,
है कहाँ लज्ज़त बची अब फर्द तो गाफिल  में है

ये बड़ा रूतबा तुम्हारा और रंगो-बू कहे,
तुमसे ज़्यादा है बहुत इज़्ज़त अपढ़ साइल में है 

हम फकीरों जैसे "रत्ती" घूम-भटके हर-गली,
प्यार देता कौन क्या शांती किसी महफ़िल में है

शब्दार्थ
मुज़्तरिब = बेचैन, हाइल = बाधा, मदावा = उपचार
लज्ज़त = ख़ुशी, फर्द = आदमी, गाफिल = बेख़बर
रंगो-बू = रंग और सुगन्ध, साइल = भिखारी
    

1 comment:

  1. Kya baat hai!
    Gantantr Diwas kee bahut,bahut badhayee!

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