ग़ज़ल - ३
कीमत बहुत है एक सही कहे बयान की,
कीमत बहुत है एक सही कहे बयान की,
ये भी ज़रूर न फिसलन हो ज़बान की
अम्बर से आये हैं सब महरूम टूटे दिल,
बेचैन, बिखरे, नाखुश, आहट तुफान की
सीरत अजीब शक्ल अजीबो ग़रीब है,
कैसे ज़हीन बात करे खानदान की
शम्सो-क़मर नहीं चलते साथ ना कभी,
दीदार चाहे बात न कर इस जहान की
सर पर कफ़न लिये बढ़ता है जवान वो,
परवाह है नहीं दुश्मन की न जान की
तस्कीन दे रहे सब "रत्ती" ज़माने में,
बचे कुछ तो सूखे शजर दौलत किसान की
२२१ २१२१ १२२१ २१२
No comments:
Post a Comment