Saturday, September 1, 2012

ग़ज़ल - ८

ग़ज़ल - ८

रंग महफ़िल में जम के जमाया करो
लुत्फ़ हर लम्हे का सब उठाया करो
 
पाक दामन नहीं साफ दिल भी नहीं
तोहमत तुम न उन पे लगाया करो
 
चीज़ मिलती है बाज़ार में हर जगह
मुफ्त पर आँख तुम ना गढ़ाया करो
 
बरहना खेल गन्दा सियासत भरा
ना खेलो तुम कभी ना सिखाया करो
 
वो शजर क्या खिलेंगे बहारों में अब
उन पे आरा न साहिब चलाया करो
 
मंजिलें हैं वहीँ पास आती नहीं
कुछ कदम आप नज़दीक जाया करो
 
खा चुके हैं कई ठोकरें अब तलक
मौत का डर हमें ना दिखाया करो
 
बहरे ग़म ना सुनें अब किसी बात को
कश ख़ुशी का ले उनको उड़ाया करो

ज़िन्दगी बेवफ़ा भी गुज़र जायेगी
हौसला तुम न "रत्ती" गिराया करो

No comments:

Post a Comment