Thursday, November 29, 2012

गीत

गीत     2

 
खुशियों के सुनहरे आलम में,
ग़मों का दर्द सुनाई दे
रातों के फैले अंधेरों में,
जुगनू कितनी रौशनाई दे
खुशियों के सुनहरे आलम में.....
 
 
ढलती हुई जवानी से,
पूछो कैसे दिन-रात कटे
हरदम नश्तर चुभते ही रहे,
और लहू बिखरा दिखाई दे
खुशियों के सुनहरे आलम में .....
 
इक अना की खातिर मर-मिटने वाले,
सारे इंसान हैं हम
अंजाम हसीं होगा कैसे,
दावत अश्कों की रुलाई दे
खुशियों के सुनहरे आलम में .....
 
मीठे-मीठे वो दो जुमले,
किसी तरह ज़हर से कम तो नहीं
फीकी चेहरे की रंगत में,
लाखों दरारें दिखाई दे
खुशियों के सुनहरे आलम में .....
 

4 comments:

  1. ढलती हुई जवानी से,
    पूछो कैसे दिन-रात कटे
    हरदम नश्तर चुभते ही रहे,
    और लहू बिखरा दिखाई दे
    खुशियों के सुनहरे आलम में .....
    Behad sundar!

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    1. kshama Ji, Dhanyavaad aapko mera geet pasand aaya. Surinder Ratti - Mumbai

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    2. ...दिल की गहराई तक उतर जाती बहुत सुन्दर रचना!

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